काव्य रचना
कैसे बताऊँ
अब मैं कैसे बताऊँ कि तुम मेरे क्या थे ....
तुम थे तो हर रात चाँदनी रात लगती थी,
तुम थे तो तारों की इक बारात लगती थी,
तुम थे तो घनी धूप भी बरसात लगती थी,
पर अब मैं कैसे बताऊँ कि,,,
तुम थे तो ख़िज़ां में बहार लगते थे,
तुम थे तो बे-क़रारी में क़रार लगते थे,
तुम थे तो दुश्मन भी वफादार लगते थे,
पर अब मैं कैसे बताऊँ कि,,
तुम थे तो हर मौसम सुहाने लगते थे,
तुम थे तो कई दोस्त पुराने लगते थे,
तुम थे तो हम दर्द में मुस्कुराने लगते थे,
पर अब मैं कैसे बताऊँ कि,,
तुम थे तो तुम्हारी याद का रेला न रहा,
तुम थे तो फिर भीड़ में मेला न रहा,
तुम थे तो फिर तनहाई में अकेला न रहा,
पर अब मैं कैसे बताऊँ कि तुम मेरे क्या थे।
यासीन बनारसी