काव्य रचना

काव्य रचना

     " इश्क of बनारस "     

तेरी हर एक यादों को ऐसे सजा रखा है 
जैसे कोई इन्तेज़ार में पूरा शहर सजा रखा है 

अफसोस मुझे भी बहुत है दूर जाने से तेरे 
तभी तो  उजाले होते हुए भी ख़ुद को अंधेरों में छिपा रखा है 

जो बिताए थे पल तेरे बाहों में लिपटकर कभी घाटों पर 
उसी ख्वाबों में आज भी अपनी यादों को डूबा रखा है 

अब तो बस इन्तेज़ार है तेरा फिर से मेरे शहर बनारस  आने का 
कुछ कहना बाकी है तुमसे जिसे अपने दिल में दबा रखा है 

मुझे मालूम नहीं था इश्क का असर ऐसा होता है 
तभी तो खुद को इन्तेज़ार में तेरे ये हाल बना रखा है 

अब ना कोई शिकवे हैं ना शिकायत मुझे तुमसे 
बस तुम्हारा ऐहसास है जिसके सहारे खुद को तेरे लिए बचा रखा है 

अब नहीं चाहता कि कोई और जलाए इस जले हुए जिस्म को 
बड़ी मुश्किल से तेरे चाहत की मरहम लगा रखा है 

कभी फुर्सत मिले तो आना फिर से मेरे शहर बनारस 
तेरे इन्तेज़ार में सारे शहर में तेरे नाम का दीपक जला रखा है 

अगर ना हो यकीन तो चले जाना उस पीपल की छाँव में 
जिसके पते पर  खुद का पता लिखा रखा है 

अब तो खुद को तेरे इश्क में यू कर दिया हाल अपना 
जैसे खुद की जनाजे पर खुद का लाश रखा है

-कवि रितेश रंजन