वाराणसी में पंचक्रोशी यात्रा पर निकलें नागा साधु, 5 दिन में तय करेंगे 75 किमी की दूरी, बाबा विश्वनाथ किया आशीर्वाद

वाराणसी में पंचक्रोशी यात्रा पर निकलें नागा साधु, 5 दिन में तय करेंगे 75 किमी की दूरी, बाबा विश्वनाथ किया आशीर्वाद

वाराणसी (रणभेरी): महाकुंभ के बाद काशी पहुंचे नागा साधु एक के बाद एक परंपराओं को निभा रहे हैं। आज से मणिकर्णिका घाट पर संकल्प और बाबा विश्वनाथ के दर्शन के साथ ही 300 से अधिक नागा साधु पंचक्रोशी से यात्रा शुरू हो गई है। सभी साधु संत पांच पड़ाव को पांच दिनों में पूर करेंगे। महाकुंभ के बाद काशी आए नागा साधु होली तक रहेंगे। श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के थानापति विवेक भारती ने बताया कि अस्सी घाट से पैदल पंचक्रोशी का पहला पड़ाव कंदवा स्थित कर्मदेश्वर महादेव मंदिर पहुंचेंगे। वहां विश्राम करने के बाद अगले दिन सुबह पूजन-अर्चन कर अगले पड़ाव भीमचंडी के लिए निकलेंगे।

इसके बाद रामेश्वर, पांचों पंडवा होकर अंतिम पड़ाव कपिलधारा होते हुए पुन: मणिकर्णिका पहुंचकर संकल्प पूरा करेंगे। पांच दिनों तक प्रतिदिन 15-15 किमी की यात्रा तय करेंगे। पांचों पड़ाव के देव स्थलों पर पूजन-अर्चन करेंगे। निरंजनी अखाड़े के साधु-संत नौ मार्च को सुबह पंचक्रोशी यात्रा पर निकलेंगे। अखाड़े के श्रीमहंत रवींद्र गिरि महाराज ने बताया कि हरिद्वार से अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि महाराज दो-तीन दिन में काशी आ रहे हैं।


 इसके बाद उनकी अगुवाई में 200 से अधिक नागा साधु-संत पंचक्रोशी यात्रा शामिल होंगे। काशी में कहा जाता है कि पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत त्रेता युग से हुई थी। धार्मिक ग्रंथों में पंचक्रोशी यात्रा का बहुत महत्व बताया गया है। त्रेता युग में भगवान राम ने अपने तीनों भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न और पत्नी के सीता के साथ काशी में पंचक्रोशी यात्रा की थी। भगवान राम ने स्वयं रामेश्वरम मंदिर में शिवलिंग स्थापित किया था।उन्होंने यह यात्रा अपने पिता राजा दशरथ को श्रवण कुमार के माता-पिता के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए की थी। दूसरी बार पंचक्रोशी परिक्रमा श्रीराम ने तब की थी, जब रावण वध करने से उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। उस दोष से मुक्ति के लिए प्रभु ने पत्नी सीता एवं भाई लक्ष्मण के साथ परिक्रमा की थी। द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञावास के दौरान ये यात्रा द्रौपदी के साथ की थी।