चलो चमन में टहल के आएं, फिजां में खुशबू नई-नई है...

चलो चमन में टहल के आएं, फिजां में खुशबू नई-नई है...

वाराणसी (रणभेरी सं.)। खामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फत नई-नई है, अभी तकल्लुफ है गुफ्तगू में, अभी मोहब्बत नई-नई है। अभी न आएंगी नींद न तुमको, अभी न हमको सुकूं मिलेगा अभी तो धड़केगा दिल ज्यादा, अभी मुहब्बत नई नई है... शबीना अदीब ने जब बनारस मुशायरा के मंच से यह गुनगुना शुरू किया तो दर्शक भी तरोताजा हो उठे। रविवार की रात बेनियाबाग के मैदान में बनारस मुशायरा में शबीना अदीब ने शायरी के मिसरे को आगे बढ़ाते हुए सुनाया बहार का आज पहला दिन है, चलो चमन में टहल के आएं, फजा में खुशबू नई-नई है गुलों में रंगत नई नई है। शायरी जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी लेकिन ठंड की रात में श्रोताओं का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था। 

शबीना ने शायरी सुनाकर पूरी महफिल में डाल दी जान

शबीना ने जो खानदानी रईस हैं वो मिजाज रखते हैं नर्म अपना, तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है। जरा सा कुदरत ने क्या नवाजा के आके बैठे हो पहली सफ में, अभी क्यों उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई है... सुनाकर पूरी महफिल में जान डाल दी। कार्यक्रम की शुरूआत में इस्माइल नजर ने मंच संभाला और कार्यक्रम की शुरूआत की। 

शायर अमजद खान ने खूब बटोरी तालियां

मुशायरे की शुरूआत में गुल ए सबा ने नातिया कलाम पढ़ा। डॉ. प्रशांत सिंह ने अपने हास्य काव्य पाठ से लोगों का खूब मनोरंजन किया। अलीशा मेराज ने बेटी व पिता पर शायरी पढ़ा। नौजवान शायर अमजद खान ने मेरी नजरों में मुहब्बत का वो हकदार नहीं, गम के मारों को जिसे कोई सरोकार नहीं..पढ़कर खूब तालियां बटोरी। 

अरशद मेहताब ने पढ़ी ये शायरी

अरशद मेहताब ने घर से मैं अपने मां की दुआ लेकर आया हूं.. सुनाया तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। मोहन मुंतजिर, इस्माईल नजर, गुल ए सबा, धर्मराज उपाध्याय के साथ ही काशी के सलीम शिवालवी, डॉ प्रशांत सिंह ने शायरी पढ़ी। शायरों का स्वागत कमेटी के अध्यक्ष अनिल यादव बंटी ने किया। संचालन सुधांशु श्रीवास्तव व दमदार बनारसी ने किया।