देवउठनी एकादशी आज: काशी में पुण्य की डुबकी के लिए उमड़े श्रद्धालु, जाने पूजा- विधि, सामग्री की पूरी लिस्ट

देवउठनी एकादशी आज: काशी में पुण्य की डुबकी के लिए उमड़े श्रद्धालु, जाने पूजा- विधि, सामग्री की पूरी लिस्ट

वाराणसी (रणभेरी): कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को हरि प्रबोधिनी देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने का शयन काल पूरा करने के बाद जागते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन माता तुलसी के विवाह का आयोजन भी किया जाता है। इसी दिन से भगवान विष्णु सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं और इसी दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

काशी के ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए। एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े और गन्ना रखकर डलिया से ढांक देना चाहिए। रात में घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए। रात के समय परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं की पूजा करना चाहिए। इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और कहना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास...।

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के पौधे और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना...। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपतियों की कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।

मुहूर्त- 
एकादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 03, 2022 को 07:30 पी एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 04, 2022 को 06:08 पी एम बजे

पारण समय-
पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 5 नवंबर, 06:27 ए एम से 08:39 ए एम
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 05:06 पी एम
chandra grahan 2022: कार्तिक पूर्णिमा पर लगेगा चंद्र ग्रहण, जानें मोक्ष काल और सूतक काल


एकादशी पूजा- विधि-

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें। भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह भी होता है। इस दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम अवतार और माता तुलसी का विवाह किया जाता है।  इस दिन माता तुलसी और शालीग्राम भगवान की भी विधि- विधान से पूजा करें। भगवान की आरती करें।भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

एकादशी व्रत पूजा सामग्री लिस्ट
श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति, पुष्प, नारियल , सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी , पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन, मिष्ठान