फैंसी डिजाइनर व टेराकोटा के दीयों की डिमांड बढ़ी

दीयों में तीन दीया, पंचमुखी, नौमुखी दीया, 21 दीयों वाली थाली भी है
दीयों को तैयार करने में जुटा है हरिमोहन प्रजापति का पूरा परिवार, विद्युत झालरों के बावजूद फैंसी दीये कम आकर्षक नहीं
राधेश्याम कमल
वाराणसी (रणभेरी): ज्योति पर्व दीपावली के नजदीक आते ही कुम्हारों के यहां दीयो को तेजी से तैयार करने का काम चल रहा है। मिट्टी के दीयों के साथ ही टेराकोटा के भी फैंसी व डिजाइनर दीयों को बनाने में कुम्हार परिवार के लोग जुटे हुए हैं। मिट्टी के दीयों के साथ ही फैंसी डिजाइनर दीयों की डिमांड बरकरार है। दीपावली पर एक ओर जहां चाइनीज झालरों की भरमार हो जाती है। एक समय ऐसा भी आया कि दीपावली पर दीयों की खपत एकदम कम हो गई। हर कोई दीपावली पर सिर्फ झालरों की झिलमिलाट को ही पसंद करने लगा। लेकिन विद्युत झालरों के बावजूद लोग मिट्टी के दीये एवं टेराकोटा के फैंसी डिजाइनर दीयों को लोग फिर से पसंद करने लगे। फैंसी डिजाइनर दीये भी इतने आकर्षक है कि कोई उसे बस देखता ही रह जाये। फैंसी दीयों में तीन दीया, पंचमुखी, नौमुखी, 21 दीपकोें की थाली, 51 दीपों का स्टैैण्ड दीया आदि है।
दीयों में कोई रंग भरता है तो कोई उसकी डिजाइन तैयार करता है
तिलभंडेश्वर (भेलूपुर ) निवासी शिल्पकार हरिमोहन प्रजापति का पूरा परिवार साल भर तक हर त्यौहार पर मूर्तियों को गढ़ता रहता है। इनमें उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ऋचा प्रजापति मूर्तियों के अलावा दीयों में कलर भरने का काम करती हैं तो बेटियां आस्था व हर्षिता व बेटा मृदुल व हरिवंश मोहन इसमें जुटे रहते हैं। फैंसी डिजाइनर दीये हैंडमेड होते हैं और इन पर हाथों से कलरिंग होती है। खास बात यह है कि सभी बच्चे पढ़ाई भी कर रहे हैं और समय निकाल कर मां-पिता के कार्य में सहयोग भी करते हैं। हरिमोहन प्रजापति बताते हैं कि उनकी बेटी हर्षिता सॉफ्टवेयर इंजीनियर है जबकि आस्था प्रजापति बीएचयू में एमए. कर रही हैं। बेटा मृदुल प्रजापति मूर्तियों के अलावा दीयों पर डेकोरेशन करते हैं। सबसे छोटा बेटा हरिवंश मोहन पांचवीं क्लास में है लेकिन वह भी अपनी उम्र के मुताबिक पढ़ाई के बाद मूर्तियों में कलरिंग व पैकिंग काम करता है। शिल्पकार हरिमोहन प्रजापति खुद एमएससी (मैथ) करके इस धंधे में लगे हुए हैं।
मूर्तियों व दीयों को गढ़ने की कला विरासत में मिली
हरिमोहन प्रजापति बताते हैं कि मूर्तियों व दीयों को गढ़ने का काम उन्हें विरासत में मिला है। उनके पिता श्री लक्ष्मन प्रसाद प्रजापति एवं मां प्रभावती देवी ने उन्हें इस कला का ज्ञान दिया। उनके यहां हर त्यौहार पर मूर्तियां तैयार होती हैं। इनमें गणेश चौथ पर गणपति, सरस्वती पूजा पर मां सरस्वती, नवरात्र में मां दुर्गाजी, जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण, तीज पर शंकर पार्वती व दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी, ग्वालिन आदि तैयार करते हैं। वे बताते हैं कि उनके 80 वर्षीय पिता लक्ष्मन प्रजापति इधर काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे हैं। इसके चलते अब वह ही इस धंधे को अपने परिवार के साथ मिल कर चला रहे हैं। उनके यहां दीपावली पर डेकोरेशन वाल हेंगिंग के भी आइटम हैं। उनका कारखाना वर्ष 1984 से लगातार चल रहा है। उनके कारखाने से बनायी गई मूर्तियां व दीये तथा अन्य आइटम यहां से दूसरी जगहों पर भी भेजे जाते हैं।