2026 तक बदल जाएगा सीबीएसई बोर्ड का पूरा पाठ्यक्रम
(Ranbheri): सीबीएसई के विद्यार्थियों को छठवीं कक्षा से 12वीं तक इतिहास को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाएगा और वैज्ञानिक आधार पर तैयार इतिहास पाठ्यक्रम में शामिल होगा। इसमें राखीगढ़ी, बभनियांव सहित हर नई खोज व सर्वेक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, ताकि नई पीढ़ी अपने गौरवशाली संस्कृति व इतिहास से रूबरू हो सके। सीबीएसई बोर्ड में छठवीं कक्षा की किताबों से अब आयों के आक्रमणकारी होने का इतिहास हटा दिया जाएगा। इसके साथ ही वर्तमान में इतिहास के तथ्यों पर प्रकाश डालने वाली खोज, सर्वेक्षण और खोदाई को भी शामिल किया जाएगा। नई शिक्षा नीति के तहत छठवीं से 12aff तक इतिहास को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाएगा। इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने पर मुहर लग गई है।
नेशनल काउंसिल ऑफ एजूकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग ( एनसीईआरटी) पाठ्यक्रम समिति के सदस्य प्रो. वसंत शिंदे शुक्रवार को वाराणसी आए। बीएचयू के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद उन्होंने प्राचीन इतिहास विभाग में पत्रकारों से बात की और कहा कि वाराणसी का इतिहास सुनहरा है। धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिकता को समेटनी वाली नगरी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां आराजी लाइन विकास खंड के राजातालाब स्थित बभनियांव से मिल चुकी हैं। खोदाई में लगभग 2200 वर्ष पहले के शुंग कुषाणकालीन फर्श और सामुदायिक चूल्हे के प्रमाण मिले हैं। चूल्हों का इस्तेमाल सामूहिक भोज के लिए होता था। बाढ़ के समय मिट्टी के जमाव का टीला भी मिला है। पकी मिट्टी का चक्र, खिलौनानुमा बैलगाड़ी के पहिये और रीड मार्क्स भी मिले हैं।
इतिहास की नई किताबों का पुनर्लेखन कराया जा रहा है। इसे लिखकर तैयार करने में तीन वर्ष का समय लगेगा। 2026 तक इसे सीबीएसई स्कूलों में लागू किया जाएगा। इसके लिए हर क्षेत्र से डाटा लिया जाएगा। जो भी नई खोज हुई होगी, उसे भी शामिल किया जाएगा। अब तक मिले साक्ष्यों के हिसाब से गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। आर्य आक्रमणकारी नहीं थे। नई शिक्षा नीति में कक्षा छठवीं से 12वीं तक में इतिहास को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाएगा। इतिहास के लेखन में जो गड़बडि़यां हैं, उसे वैज्ञानिक आधार पर दुरुस्त किया जा रहा है। जो भी गलत है, उसको हटाकर नया इतिहास शामिल किया जाएगा। देश भर के पुरातत्वविद खोज कर रहे हैं। नए तथ्य सामने आ रहे हैं। कर्नाटक के कंगनहल्ली में पहली बार सम्राट अशोक की प्रस्तर प्रतिमा मिली है। इससे पता चला है कि वह कैसे दिखते थे। इतिहास वैज्ञानिकता पर आधारित होना चाहिए। देश भर में हो रही खोदाई व सर्वेक्षण के दौरान ढेर सारे प्रमाण मिल रहे हैं। यह पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं। नए इतिहास के लेखन में यह मील का पत्थर साबित होंगे। नई शिक्षा नीति के तहत जल्द ही पाठ्यक्रम में बदलाव नजर आएगा। सरकार व मंत्रालय इस पर काम भी कर रहे हैं।- प्रो. वसंत शिंदे, सदस्य, एनसीईआरटी पाठ्यक्रम समिति