खुला अन्नपूर्णा का दरबार, लगी श्रद्धालुओं की लाइन
- मां अन्नपूर्णा की एक झलक पाकर श्रद्धालु हुए निहाल, वार्षिक विधान के अनुसार चार दिन होंगे दर्शन
वाराणसी (रणभेरी): भोले की नगरी काशी में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी उदया तिथि में रविवार को आज भोर 4 बजे से देवी अन्नपूर्णा की स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन-पूजन शुरू हो गया है। बाबा विश्वनाथ के आंगन में विराजमान मां अन्नपूर्णा अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरी करती हैं। वही धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक श्रद्धालुओं का रेला माता के दरबार में उमड़ता है। रविवार को भोर की आरती के बाद मां अन्नपूर्णा के कपाट खुल गए हैं।दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतार लगी है। अन्नपूर्णा मंदिर में दर्शन पूजन के लिए भारी भीड़ उमड़ी है। भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस को मशक्कत करनी पड़ रही है। साल में सिर्फ चार दिनों के लिए माता अन्नपूर्णा के दर्शन होते हैं। मंदिर के महंत शंकर पुरी ने बताया कि मां अन्नपूर्णा का यह मंदिर देश का इकलौता मंदिर है जो श्री यंत्र के आकार में निर्मित है।श्री यंत्र के ऊपर विराजमान माता अपने भक्तों और श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाती रहती हैं। मंदिर के कोण मिलाने पर स्वत: स्वरूप में श्रीयंत्र का निर्माण हो जाता है। यही कारण है कि माता का यह स्थान स्वत: सिद्ध है। देश में कई स्थानों पर मां अन्नपूर्णा का मंदिर है लेकिन काशी में विराजमान मां अन्नपूर्णा का अलग ही महत्व है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम और उसके आसपास का पूरा इलाका मां अन्नपूर्णा की जय और हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा।
मध्याह्न भोग आरती के लिए आधे घंटे का विश्राम होगा और फिर रात 11 बजे तक दर्शन पूजन का क्रम चलेगा। चार दिनी विधान अनुसार दर्शन-पूजन का यही क्रम 26 अक्टूबर तक चलेगा। हालांकि 25 को सूर्यग्रहण के कारण मंदिर के कपाट दोपहर दो बजे से सात बजे तक बंद रहेंगे। अंतिम दिन अन्नकूट का भोग लगाया जाएगा और रात 11 बजे महाआरती के साथ एक साल के लिए मंदिर के पट फिर बंद हो जाएंगे।हर साल स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के पट धनतेरस पर ही खुल जाते हैं, लेकिन इस बार तिथियों के फेर से एक दिन बाद मंदिर के कपाट खुल रहे हैं।
इससे अनजान महिलाओं का जत्था शुक्रवार दोपहर से बैरिकेडिंग में कतारबद्ध हो गया। पुलिस व मंदिर प्रशासन की ओर से बताने-समझाने के बाद महिलाएं कतार में लगी रहीं। उनका दृढ़ संकल्प रविवार को मंदिर के कपाट खुलने के बाद पूरा होगा। उनकी आस्था को देखते हुए मंदिर प्रशासन की ओर से महिलाओं के चाय-नाश्ता व भोजन का बैरिकेडिंग में ही इंतजाम किया गया। मंदिर प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया कि सुरक्षा बाबत कैमरों की संख्या बढ़ा दी गई है। जिसके लिए कंट्रोल रूम बना है। जहां से सभी पर रहेगी नजर। मंदिर में जगह-जगह सेवादार तैनात रहेंगे। जिससे दिव्यांग व बुजुर्ग भक्तों को माता के दर्शन में समस्या न हो। मां अन्नपूर्णेश्वरी की स्वर्ण प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण व अन्य शास्त्रों में है। इनमें उल्लेख है कि राजा दिवोदास के काल में काशी में भयंकर अकाल पड़ा। निजात के लिए राजा ने धनंजय नामक ब्राह्मण से मां अन्नपूर्णा की साधना को कहा। ब्राह्मण ने कामरूप जाकर मां की साधना की। लंबे समय तक दर्शन न मिलने से वह काफी दुखी हुआ और प्राण त्यागने को तालाब में छलांग लगा दी। भक्त के भाव से विह्वïल मां ने स्वर्णिम रूप में प्रकट हो दर्शन दिया। उनके आग्रह पर देवी अन्नपूर्णा सदा के लिए काशी की होकर रह गईं। मंदिर महंत के अनुसार वर्ष 1601 में तत्कालीन महंत केशव पुरी के समय भी देवी के इस विग्रह के पूजन का प्रमाण उपलब्ध है।