प्रभु के चरणों की रज पड़ते ही जीवंत हो उठीं अहिल्या

प्रभु के चरणों की रज पड़ते ही जीवंत हो उठीं अहिल्या

वाराणसी (रणभेरी सं.)। अटल विश्वास बड़ी पूंजी होती है। मुनि विश्वामित्र ने यह श्रीराम पर किया था। उन्होंने महाराज दशरथ से भगवान राम को साथ ले जाने की अनुमति मांगी तो राजा निराश हो गए लेकिन मुनि का विश्वास अडिग था। इसी बल पर वह श्रीराम को साथ ले गए। इसी के साथ भगवान ने अपने अवतार के उद्देश्यों को पूरा करने की शुरूआत की। रामनगर की रामलीला के तीसरे दिन गुरुवार को इन्हीं प्रसंगों के दर्शन लीला प्रेमियों को हुए। देवताओं के राजा इंद्र के अपराध के कारण गौतम ऋषि के श्राप से राह में पत्थर की शिला बनकर पड़ी अहिल्या को श्री राम उनके पति गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त कर दिया तो वह यज्ञ की रक्षा के लिए विश्वामित्र ने अयोध्या पहुंचकर राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को अपने लिए मांगा। राक्षसों की अत्याचार से दुखी विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए दशरथ के दरबार में पहुंचे थे। जहां उनका जमकर आथित्य सत्कार किया गया। राजा दशरथ ने उनसे पूछा कि आपने मेरे ऊपर ऐसी कृपा कभी नहीं की किस कारण से आपका आगमन हुआ। जिस पर उन्होंने बताया कि राक्षस उन्हें बहुत परेशान कर रहे हैं। जिसके रक्षा के लिए वह उनके पुत्रों राम और लक्ष्मण को अपने साथ ले जाने के लिए आए हैं। 

उन्होंने इसके बदले में धन संपदा आदि मांगने के लिए कहा। लेकिन अपने पुत्रों को देने से इनकार कर दिया। गुरु वशिष्ठ में समझाया कि जिसे आप साधारण पुत्र समझ रहे हैं उनके बल पुराणों में प्रसिद्ध है। गुरु वशिष्ठ की बात मानकर दशरथ ने अपने पुत्रों को विश्वामित्र को सौंप दिया। और उनसे कहा कि आज से उनके माता और पिता आप ही हैं। विश्वामित्र उनको लेकर जब अपने आश्रम के समीप पहुंचे तो ताड़का को उन्हें दिखाया। उनको देखकर ताड़का क्रोधित होकर दौड़ी राम ने युद्ध में उसे मार कर उसके प्राण हर लिए। राम और लक्ष्मण ने आश्वासन दिया कि आप निर्भय होकर यज्ञ कीजिए हम रक्षा करेंगे। इतना सुनते ही मारीच अपनी सेना लेकर दौड़ पड़ा। जिसे राम ने बिना पल के गंवाए उसे समुद्र के पार फेंक दिया यह देखकर देवता प्रसन्न होकर श्री राम के जयकारे लगाने लगे। मुनि विश्वामित्र के साथ आगे चलते समय रास्ते में एक आश्रम दिखाई दिया। 

 जिसे देखकर राम ने पूछा कि रास्ते में पड़ा पत्थर की शिला कौन है। इसके बारे में विश्वामित्र ने बताया कि इंद्र के अपराध के कारण गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहिल्या को श्राप दे दिया था। तब से यह शीला बनकर रास्ते में पड़ी है। आप इसे अपने चरण कमल से स्पर्श करके श्राप से मुक्त कर दीजिए। उनकी बात मानकर राम ने अहिल्या को श्राप से मुक्त कर दिया। जिसके बाद वह उनके चरणों पर गिर पड़ी। श्री राम उसे मुक्ति देकर स्वर्ग लोक भेज देते हैं। दोनों भाइयों को लेकर विश्वामित्र आगे बढ़े तो उन्होंने रास्ते में गंगा जी को देखकर उनका दर्शन किया दोनों भाइयों को गंगा की पृथ्वी पर अवतरण की कथा सुनाई। मुनि विश्वामित्र के साथ चलते- चलते दोनों भाई जनकपुर के नजदीक पहुंचे। जहां मुनि विश्वामित्र रुकने की इच्छा व्यक्त की तब-तब उनके आगमन का समाचार पाकर राजा जनक वहां पहुंच गए। दोनों भाइयों को देखकर उन पर मोहित हो गए। राजा जनक ने विश्वामित्र से पूछा कि यह बालक किसके लड़के हैं। जिसपर विश्वामित्र ने बताया कि यह बालक रघुकुलमणि महाराज दशरथ के पुत्र हैं। जिन्होंने इनको हमारे हित के लिए मेरे साथ भेजा है। दोनों भाइयों ने संग्राम में असुरों को जीत कर यज्ञ की रक्षा की है। जिसे सारा संसार जानता है। राजा जनक अपने साथ सबको जनकपुर में गए। 

विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को लेकर जंगल पहुंचे : चिरईगांव। जाल्हूपुर के टूड़ी नगर की प्राचीन रामलीला गुरुवार को महर्षि विश्वामित्र के अयोध्या आगमन से प्रारंभ हुई। राजा दशरथ ब्राह्मणों को साथ लेकर महर्षि की अगवानी करते हैं तथा उन्हें सिंहासन पर विराजमान कराकर राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को आशीर्वाद दिलवाते हैं। राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ वन में जाने की अनुमति देते हैं। श्रीराम ताड़का, सुबाहु का वध करते हैं। श्रीराम-लक्ष्मण को विश्वामित्र मंत्र विद्या देते हैं। 

लोहता बाजार की रामलीला 24 से: लोहता बाजार की 310 वर्ष पुरानी रामलीला इस बार 24 सितंबर को मुकुट पूजन के साथ प्रारंभ होगी। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष त्रिलोकी नाथ दुबे एडवोकेट ने बताया कि रामलीला 23 दिनों तक विभिन्न स्थानों पर होगी। इसके लिए सभी तैयारियां कर ली गई हैं।