शहर का चौराहा बनेगा सबसे सुंदर

शहर का चौराहा बनेगा सबसे सुंदर

गोरखपुर। सहायक अभियंता रोनित सिंह बताते हैं कि चौराहे को शहर का सबसे सुंदर चौराहा बनाने के लिए नए तरीके से डिजाइन की गई है। गोल चबूतरे पर जेपी की मूर्ति रखी जाएगी। चबूतरे पर तीन कोण की एक डिजाइन बनाई गई है, जिसमें घड़ी भी लगाई जाएगी। इससे इसकी खूबसूरती और बढ़गी। गोरखपुर में शहर के सबसे पुराने इलाकों में से एक असुरन चौराहे से होकर गुजरने वालों को जल्द ही बदल रहे गोरखपुर का एक और नजारा दिखेगा। नए बदलाव के साथ यह शहर का सबसे सुंदर चौराहा बन जाएगा। पीडब्ल्यूडी की तरफ से सुंदरीकरण का कार्य कराया जा रहा है। चौराहे पर जहां लोक नायक जयप्रकाश नारायण की मूर्ति लगी है, वहां एक त्रिभुजाकार डिजाइन बनाई जाएगी। इसके बीच में मूर्ति के चारों तरफ फव्वारा और आकर्षक लाइटें लगाई जाएंगी। पूर्वोत्तर रेलवे के कर्मचारी विनोद राय बताते हैं कि गोरखपुर स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर नौ की तरफ से पहले छोटी लाइन के लिए एक टिकट काउंटर था। एनईआर मुख्यालय गोरखपुर के रेलवे का बड़ा अस्पताल, कारखाना और अन्य दफ्तरों के चलते शहर के लोगों के अलावा महराजगंज और पिपराइच की तरफ से आने वालों का असुरन चौराहे की तरफ से ही स्टेशन पर अधिक आना-जाना होता था। मेडिकल कॉलेज, पिपराइच, मोहद्दीपुर और धर्मशाला पुल की तरफ से आने वाली मुख्य सड़क इसी चौराहे पर मिलती है। इसके चलते भी यहां अन्य जगहों से अधिक रौनक होती थी। बाद में अतिक्रमण के चलते यह चौराहा सिकुड़ गया था। इधर जब मेडिकल कॉलेज रोड फोरलेन हुआ है, तब चौराहे की भी सूरत बदलने लगी। यहां पीडब्ल्यूडी की तरफ से सुंदरीकरण कराया जा रहा है। चौराहे के चारों तरफ की पक्की दुकानें भी तोड़कर हटा दी गई हैं। अब पिपराइच मार्ग और मोहद्दीपुर मार्ग को भी फोरलेन बनाया जाना है। पीडब्ल्यूडी के सहायक अभियंता रोनित सिंह बताते हैं कि चौराहे को शहर का सबसे सुंदर चौराहा बनाने के लिए नए तरीके से डिजाइन की गई है। गोल चबूतरे पर जेपी की मूर्ति रखी जाएगी। चबूतरे पर तीन कोण की एक डिजाइन बनाई गई है, जिसमें घड़ी भी लगाई जाएगी। इससे इसकी खूबसूरती और बढ़गी। मूर्ति के चारों तरफ फव्वारा और फसाड लाइटें लगाई जाएंगी। त्रिभुजाकार आकृति के शीर्ष पर एक झंडा भी लगाया जाएगा। विष्णु मंदिर के पास खुदे असुरन पोखरे के नाम पर पड़ा  चौराहे का नाम असुरन होने को लेकर अलग-अलग तथ्य दिए जाते हैं। स्थानीय निवासी 60 वर्षीय प्रमोद मिश्र बताते हैं-उनका परिवार यहां कई पीढि़यों से रहता है। ऐसी मान्यता है कि विष्णु मंदिर के पीछे जो विशाल पोखरा था, उसे असुरों ने एक रात में खोदा था।  इसीलिए उस पोखरे को असुरन पोखरा कहा जाता था। उस पोखरे के नाम पर ही इस चौराहे का नाम भी असुरन पड़ गया। वहीं, साहित्यकार रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी का कहना है-पहले इस इलाके में असुर जनजाति के लोग रहते थे। धीरे-धीरे जब पेड़ कटने लगे और जंगल रिहायशी इलाकों में तब्दील होने लगे तो असुर जनजाति के लोगों का यहां से पलायन हो गया कुशीनगर के बौद्ध भिक्षु बुद्ध मित्र भिक्खू और कवि उस्मान ने भी अपनी रचनाओं में गोरखपुर में असुर जनजाति के रहन-सहन का उल्लेख किया है। जब इलाके में एक चौराहा विकसित हुआ तो उसे असुरन नाम की पहचान मिल गई