जिम्मेदारों की कारस्तानी से स्वच्छता की बात बेमानी

जिम्मेदारों की कारस्तानी से स्वच्छता की बात बेमानी
  • साफ सफाई की खुली पोल, स्वच्छता को मुंह चिढ़ाता शौचालय
  • जिम्मेदार बेपरवाह, पीएम के संसदीय क्षेत्र में स्वच्छता की उड़ रही धज्जियां

वाराणसी (रणभेरी): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। यहीं से ही पूरे देश को स्वच्छता के प्रति संकल्पबद्ध होने का संकल्प दिया गया था पर उसी बनारस में स्वच्छता की धज्जियां उड़ रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि स्वच्छता का आंकड़ा मुंह चिढ़ा रहा है।  बनारस को विकसित करने व स्वच्छ बनाने के लिए करोड़ो की सौगात दी गई बावजूद इसके जमीनी हकीकत कुछ और है। वाराणसी में स्वच्छता अभियान के तहत जिन सैकड़ों शौचालयों का निर्माण कराया गया आज उन शौचालयों की दुर्दशा देखते बनती है। 

करोड़ों की सौगात से हर दिन विकास के राह पर अग्रसर बनारस, अपने बुनियादी सुविधाओं पर आंसू बहा रहा है। शहर के सैकड़ों शौचालय ऐसे है जो लोगों की सुविधा के लिए बनवाए गए हैं। उनके बाहर होर्डिंग तो बहुत सुंदर लगे हुए हैं, आई लव बनारस के टैग लगे हुए हैं लेकिन अंदर की दशा जहां विकास के नाम पर आंसू बहा रही वहीं जिम्मेदारों की लापरवाही को बेनकाब कर रही है। सड़कों के किनारे बने हुए शौचालयों में साफ सफाई का कहीं नामो निशान नहीं है। आपके अपने अखबार रणभेरी के पड़ताल में पाया गया कि सरकार की तरफ से शहर में कम्युनिटी टॉयलेट, यूरिनल और पिंक लेडीज टॉयलेट का निर्माण कराया तो गया लेकिन ये निर्माण केवल निर्माण बनकर ही रह गए। वहां साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं। पिंक टॉयलेट में महिलाओं के लिए कोई सुविधा नहीं है। कम्युनिटी टॉयलेट में साबुन और तौलिए नहीं है। 

यह सच है कि बनारस में कोई ऐसी गली मोहल्ले नहीं, जहां शौचालय न हो। बनारस का कोई ऐसा घाट नहीं, जहां अब शौच की व्यवस्था न हो, लेकिन इस व्यवस्था को निस्तनाबूत करने में आमजनता सहित यहां के नगर निगम और जनप्रतिनिधि भी जिम्मेदार है। इन शौचालयों की साफ सफाई की जिम्मेदारी कौन लेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है !कहने को तो मशीन से सफाई होती है, कहने को ये भी है कि जो कार्यदायी संस्था ठीक से काम नहीं कर रही है, उसे ब्लैकलिस्ट किया जा रहा है परंतु सच्चाई कुछ और है। यह सोचनीय विषय है कि बनारस की स्वच्छता में खुद यहां के नागरिकों का भी कोई सहयोग नहीं है। 

बता दें कि भारत 135 करोड़ आबादी वाला देश है और एक मोटे अनुमान के अनुसार 65% से अधिक आबादी के पास उचित स्वच्छता व्यवस्था नहीं है। स्वच्छ भारत अभियान जो 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया था जिसके परिणाम स्वरूप 2019 तक भारत में सार्वजनिक शौच को समाप्त कर दिया गया। भले ही भारत में सौ मिलियन से अधिक शौचालय बनाये गये हों लेकिन लोग उचित स्वच्छता प्रणाली का उपयोग करने से आज भी इंकार करते हैं। नगर निगम करोड़ों रुपये खर्च कर बनाए गए सार्वजनिक शौचालयों तक का रखरखाव नहीं कर पा रहा। यही कारण है कि विभिन्न स्थानों पर बनाए गए सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति बदहाल है। लोगों की सुविधा के लिए बनाए गए इन सार्वजनिक शौचालय में गंदगी व बदबू से बुरा हाल है।

नगर निगम क्षेत्र में बनाए गए सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति का जब पड़ताल किया गया तो अधिकतर जगह हालात बदतर ही मिले। सार्वजनिक शौचालय कहीं गंदगी से अटे पड़े हैं तो कहीं पानी तक की व्यवस्था नहीं है। सार्वजनिक शौचालयों से टोंटियां गायब हैं और पानी के पाइप टूटे पड़े हैं। नगर निगम ने शौचालयों के रखरखाव के लिए अच्छी व्यवस्था नहीं है जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार करोड़ों खर्च कर रही है, उसके बावजूद बनारस को स्वच्छ बनाने और सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति बेहतर रखने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हो रहे। यही कारण है कि सार्वजनिक शौचालयों में कहीं गेट बंद नहीं हो रहे तो कहीं पानी नहीं आ रहा। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शहर में निगम प्रशासन के प्रयासों का असर धरातल पर बहुत कम दिख रहा है। यही कारण है कि शहर में जगह-जगह बनाए गए अधिकतर शौचालय सुचारु रूप से सेवा ही नहीं दे पा रहे हैं।

जिस कारण आमजन खुले में शौच को मजबूर हैं। शौचालयों की अनदेखी लोगों के लिए आज भी समस्या बनी हुई है। शहर में अलग-अलग स्थानों पर बने सार्वजनिक शौचालय नगर निगम प्रशासन के सफाई के दावों की पोल खोल रहे हैं। इन शौचालयों के अंदर व दीवारों पर गंदगी पटी पड़ी है। इस कारण मजबूरी में लोग नाक पर रूमाल बांधकर शौचालय में घुस पाते हैं। उधर नगर निगम स्वच्छता अभियान को लेकर बड़े-बड़े दावें कर रही हैं लेकिन,  इन दावों की हकीकत शहर के सार्वजनिक शौचालय बयां कर रहे हैं। हकीकत यह है कि शौचालय में सफाई के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है। इन सार्वजनिक शौचालयों की नियमित साफ-सफाई नहीं होने से शौचालयों की दीवारें पान-गुटखा की पीक से रंगी पड़ी है। लोगों का कहना है कि, स्वच्छता अभियान का पाठ पढ़ाने वाले नगर निगम स्वयं साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दे रही है। लोगों ने शहर जगह-जगह बने सार्वजनिक शौचालयों की नियमित साफ-सफाई की मांग की हैं।

स्वच्छ भारत अभियान के तहत अपने घर में शौचालय निर्माण करने के लिए प्रेरित करने वाले सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अपने कार्यालयों में बने टॉयलेट की स्थिति सुधारने में कामयाब साबित नहीं हो पा रहे हैं। स्थिति यह है कि, ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में बने टॉयलेट की हालत खराब है। कहीं गंदगी पड़ी हुई तो किसी की सीट उखड़ी है। इन शौचालयों की निर्माण के बाद से साफ-सफाई व देख-रेख नहीं होने से इनमें गंदगी का आलम छाया हुआ है। शौचालयों की सफाई नहीं होने से लोग टोयलेट करने के लिए इधर-उधर जाकर भटकते नजर आते हैं। इस स्थिति में सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को होती है।

नगर निगम का मुख्य उद्देश्य होता है, सैनिटाइजिंग और सेनिटेशन। बाकी स्वास्थ्य संबंधी काम मुख्य चिकित्सा अधिकारी का होता है। प्रधानमंत्री जी के द्वारा पूरे देश में  स्वच्छता अभियान की शुरुआत  बनारस से ही की गई। नगरीय सीमा क्षेत्र के 90 वार्डों में हमारा मुख्य फोकस शौचालय पर ही था। खुले में शौच को लेकर हमलोग ने एक अभियान छेड़ा। हम लोगों के द्वारा पूरे शहर में तीन प्रकार के शौचालय की व्यवस्था की गई है। सामुदायिक शौचालय, पब्लिक शौचालय और यूरिनल। पूरे शहर में  लगभग 143 कम्युनिटी टॉयलेट, 66 पब्लिक टॉयलेट और 73 यूरिनल हैं। अब अगली कड़ी में हम लोग पिंक टॉयलेट पर काम कर रहे हैं। शासन से हरी झंडी मिलते ही काम शुरू हो जाएगा। 
शौचालयों को चलाने की जिम्मेदारी कार्यदाई संस्थाओं की होती हैं। बनारस में सुलभ इंटरनेशनल सहित सात से 10 संस्थाओं को ये जिम्मेदारी दी गई है। मैनुअल सफाई की जगह हमलोगो ने मशीनी सहायता से साफ सफाई शुरू किया है।  सफाई नियमित होती है, बावजूद इसके अगर कहीं निष्क्रियता आ रही है तो उन्हें ब्लैक लिस्ट करने का काम जारी है। कार्यदाई संस्थाओं पर हम लोग हमेशा मॉनिटरिंग करते रहते हैं।