नाना-नानी की कहानी हुई पुरानी, बच्चे-शिक्षक झेल रहे समर कैंप
गोरखपुर। गर्मी की छुट्टियां दिखने में तो केवल बच्चों की होती हैं, लेकिन वास्तव में इसमें माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी सबके भाव छिपे होते हैं। बच्चों के बहाने महिलाओं को भी घर के काम से कुछ समय के लिए ब्रेक मिल जाता है। कोई ससुराल से मायके जाती है, तो कोई शहर से गांव पहुंचती है। इन सबके बीच में वह महिलाएं भी घर से बाहर निकल पाती हैं, जिनको पूरे 10 महीने घर संभालने के कारण खुद के लिए फुर्सत नहीं होती। गर्मी की छुट्टियों का आनंद तो सबने खूब लिया है। बगीचे से लेकर रिश्तेदारों के घर तक की धमाचौकड़ी याद है। उस दौरान खेल-खेल में जो व्यावहारिक ज्ञान मिला, उसने जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की ताकत दी। रिश्तेदारों के आने-जाने से जो अपनापन बढ़ा, वह जीवन की अनमोल थाती बनी, लेकिन अब इसपर सिस्टम की कैंची चल गई है। सरकारी स्कूल हों या निजी, हर जगह गर्मी की छुट्टियां कम कर दी गईं हैं। ऊपर से नई शिक्षा नीति के नाम पर समर कैंप और पाठ्य सहगामी क्रियाओं ने शिक्षकों व बच्चों को उलझा दिया है। इसका असर अभिभावकों और शिक्षकों पर भी पड़ रहा है। ले-देकर बमुश्किल 10 दिन बचे हैं, उसमें ट्रेनों में सीट की ऐसी मारामारी है कि लोग चाहकर भी कहीं घूमने जाने का प्लान नहीं बना पा रहे हैं। शिक्षा विभाग के विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका असर परिवार की दिनचर्या से लेकर बच्चों के भविष्य तक पर दिख रहा है।
नए सत्र की तैयारी के लिए मिलता था अवकाश
गोरखपुर विश्वविद्यालय से सेवानिवृत प्रो. चितरंजन मिश्र बताते हैं कि जब वह प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे, तब भी गर्मी की छुट्टियों का चलन था। नौकरी में आए तब समझा कि इस अवधि में परीक्षा की कॉपियों का मूल्यांकन और परिणाम घोषित किया जाता था। जो लोग शहर में रहते थे, वे गर्मी की छुट्टियों में गांव जाकर बच्चों को वहां के माहौल से परिचित कराते थे। बच्चे जीवन की कठिनाइयों का पहला पाठ वहीं सीखते थे। रिटायर प्राथमिक शिक्षक हरेंद्र किशोर तिवारी बताते हैं कि उन दिनों स्कूलों में संसाधन कम थे। छुट्टियां व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ रिश्तों की बुनियाद को मजबूत बनाती थीं। इन छुट्टियों पर सरकारों ने प्रयोग खूब कराए। अब तो गर्मी की छुट्टी में से ही 10 दिन कम कर जाड़े की छुट्टी दी जा रही है।
शिक्षकों को बना दिया मशीन, अभिभावक भी हैरान
शिक्षिका स्नेहा गुप्ता कहती हैं कि शिक्षा एक विशिष्ट व्यवसाय है। पढ़ाई के लिए अनुकूल माहौल बनाया जाता है। बच्चों को जबरन नहीं पढ़ाया जा सकता। गर्मी की छुट्टियां बच्चों को खेलकूद के जरिये शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ बनाती हैं, लेकिन अब इस दौरान भी बच्चों को इतना काम दिया जाता है कि उनका मन पढ़ाई से उबने लगा है। शिक्षिका सरिता यादव और आभा श्रीवास्तव कहती हैं कि स्कूल सरकारी हों या निजी, हर जगह शिक्षकों को एक जैसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ गर्मी की छुट्टियां की जा रही हैं, तो दूसरी तरफ समर कैंप कराया जा रहा है। शिक्षा व्यवस्था बाजार से नियंत्रित होने लगी है।
दो माह का अवकाश, 10 माह की मिलती है ऊर्जा
गृहिणी रुपाली रघुवंशी बताती हैं कि गर्मी की छुट्टियां दिखने में तो केवल बच्चों की होती हैं, लेकिन वास्तव में इसमें माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी सबके भाव छिपे होते हैं। बच्चों के बहाने महिलाओं को भी घर के काम से कुछ समय के लिए ब्रेक मिल जाता है। कोई ससुराल से मायके जाती है, तो कोई शहर से गांव पहुंचती है। इन सबके बीच में वह महिलाएं भी घर से बाहर निकल पाती हैं, जिनको पूरे 10 महीने घर संभालने के कारण खुद के लिए फुर्सत नहीं होती। खुशबू मोदी का कहना है कि अब तो गर्मी की छुट्टियां आनंद नहीं तनाव का कारण बन रही हैं। मई के दूसरे सप्ताह तक बच्चों की क्लास चली। इसके बाद समर कैंप शुरू हो गया। उसके लिए कपड़े से लेकर पेन, पेंसिल, ड्राइंग सीट तक खुद खरीदकर देनी है। ऊपर से समर कैंप की फीस भी स्कूल ले रहे हैं।
सब तैयारी हो गई तो ट्रेन में सीट मिलनी मुश्किल
स्कूलों के समर कैंप और अन्य कार्यों से किसी तरह हफ्ते भर की फुर्सत ही मिल पा रही है। अब इसके बाद नई समस्या आने-जाने के संसाधन को लेकर है। अगर दूरी 200 किलोमीटर से अधिक है, और यात्रा अगर ट्रेन से करनी है तो फिर टिकट भी एक बाधा है। किसी भी ट्रेन में कंफर्म सीट के लिए कम से कम एक माह भर पहले रिजर्वेशन कराना होगा। इधर समय है नहीं और ट्रेन समय से चल नहीं रही हैं। गोरखपुर से पुणे जाने वाली ट्रेन 44 घंटे देर से गई। मतलब शनिवार वाली ट्रेन सोमवार की आधी रात के बाद रवाना की गई। अब जिसके पास कुल एक सप्ताह का समय है और पहले तीन दिन यहीं निकल गए तो वह कब अपने गंतव्य पर पहुंचेगा और कब लौटेगा। इस समस्या का अभी फिलहाल कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है। डीआईओेएस डॉ अमरकांत सिंह ने बताया कि छुट्टियों के बीच चुनाव की तारीख पड़ने से शिक्षकों की छुट्टियां प्रभावित हुई हैं, लेकिन जो शासन का आदेश है, उसका पालन किया जा रहा है। छुट्टियों के विषय में निर्णय लेने का अधिकार हमें प्राप्त नहीं है। पहले के समय भी 40 दिन की छुट्टियां हुआ करती थीं, आज भी वही है। पहले की अपेक्षा अब सत्र की शुरूआत अप्रैल में हो जा रही है। अब शिक्षा की नीतियों में परिवर्तन के साथ बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।