मुश्किलें आई फिर भी तोड़ीं लीकें, नई राहें बनाई

मुश्किलें आई फिर भी तोड़ीं लीकें, नई राहें बनाई

वाराणसी(रणभेरी)। आध्यात्मिक व लौकिक दोनों ही स्तरों पर दिव्यता व भव्यता का पर्याय बन चुका संकटमोचन संगीत समारोह आज मात्र एक रस्मी आयोजन से कहीं आगे एक अंतरराष्ट्रीय सांगीतिक पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। एक ऐसा पर्व उत्सव जिसकी संगीत अनुरागियों को होली, दीपावली व दशहरे की तरह व्यग्र प्रतीक्षा हुआ करती है। अपनी दीर्घ यात्रा क्रम के सौवें पड़ाव से एक कदम आगे बढ़ चुका यह महोत्सव भी बीते दशकों में सनातन धर्म दर्शन का अभिन्न अंग रहे देवायतनीय संगीत आराधन की परंपरा का अग्रगण्य ध्वजवाहक रहा है। शताब्दियों पूर्व प्रभाषपट्टन (तत्कालीन गुजरात) के सोमनाथ देवालय से प्रारंभ हुए अपूर्व कीर्ति मंडित संगीताराधन की यशोगाथा के प्रतीक रूप का एकमात्र संवाहक रहा है।  सबसे बड़ी बात यह कि सनातन धर्म दर्शन की सबके बड़ी जीवनी शक्ति औदार्य से प्रेरित इस संगीत अनुष्ठान का भी युगधर्म के अनुसार खुद को बदलते रहना। जर्जर लीकों को तोड़कर, विपरीत बयारों का मुख मोड़कर मुख्य धारा संग बढ़ते रहना। वस्तुत: यह वही प्राणदायिनी वायु है जो अब तक इस महोत्सव की श्री-समृद्धि को बनाए हुए है। देश के कई देवोत्तर आयोजन के विस्मृत हो जाने के बाद भी इस उत्सव के आभा मंडल को तेजोमय बनाए हुए है।
मुस्लिम कलाकारों को मंच

यह वह दौर था जब 'आर्य धर्मेतराणाम प्रवेश: निषिद्ध:' की कठोर वर्जनाओं के चलते देवायतन संगीत समारोहों में विधर्मी कलाकारों का मंच तो छोड़िए उत्सव मंडप में प्रवेश निषिद्ध हुआ करता था। ऐसे में आंजनेय पीठ के अधिपतियों ने 'अली और बजरंग बली' के प्रभाव व प्रताप को इस तुला में तौला। एक अनाम मुस्लिम कलाकार के आग्रह को पूरा मान देते हुए उनके लिए उत्सव का द्वार खोला। फिर तो अकरम अली खां, राशिद अली खां, अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन, उस्ताद अमजद अली खां से लगायत पाकिस्तानी गजल गायक उस्ताद गुलाम अली तक ने पूरे अदब व एहतराम के साथ बरसों बरस बाबा के दरबार में हाजिरी लगाई। हनुमत लला के प्रसाद को सिर-माथे लिया व दुनियाभर में उनकी विरुदावली गाई।
वामा का वैभवनामा

कुछ इसी तरह की एक निष्ठुर रेखा बहुत दिनों तक खिंची रही समारोह के मंच पर महिला कलाकारों की उपस्थिति को लेकर। युग बदला दौर के साथ चलन भी बदले काशी के प्रबुद्धजनों ने वितंडावादियों के हो-हल्ले को नकारकर समारोह के मंच पर महिला कलाकारों को भी स्थान देने के विचार को प्रबल समर्थन दिया। आयोजकों ने फिर एक बार समय की मांग को वरीयता दी और गायिका कंकना बनर्जी ने पहली बार अपनी कंठ प्रस्तुति से हनुमत प्रभु के चरणों में स्वरांजलि अर्पित की। नृत्य की पहली प्रस्तुति का श्रेय ओडिसी नृत्यांगना संयुक्ता पाणिग्रही के सिर माथे रहा। ख्यात नृत्यांगना सोनलमान सिंह दशकों तक समारोह का अभिन्न हिस्सा बनी रहीं। सुजाता महापात्र, डोना गांगुली, सुलक्षणा पंडित जैसे दर्जनों नाम समारोह की कार्यक्रम सूची में जुड़ने लगे। समय रथ के पहिए अतीत की लीकों को छोड़ नई राहों की ओर मुड़ने लगे।