Ramnagar Ki Ramlila: रामजी की खड़ाऊं लेकर अयोध्या लौटे भरत
वाराणसी(रणभेरी): विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला और धरोहर के रूप में यूनेस्को की सूची में दर्ज लीला का गुरूवार को चौदहवां दिन रहा। लीला शुरू होती है भाव यह रहा कि-आखिर श्रीराम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे ही। पिता के वचन की लाज उनको रखना भी था और सूर्यवंश की रीति भी निभानी थी। सूर्यवंश की रीति-नीति यही कहती है कि वचन के लिए प्राण दे देना ही उत्तम है।
उधर परम त्यागी भरत कहां पीछे रहते। राम के बिना अयोध्या कैसे सुहाता तो मांग लिया श्रीराम का खड़ाऊं और उसे लाकर अयोध्या के सिंहासन पर प्रतिस्थापित कर चले गए नंदीग्राम निवास करने। रामलीला के चौदहवें दिन इन्ही प्रसंगों का मंचन हुआ। भाई भरत के साथ श्रीराम को मनाने गए अयोध्यावासी समेत माताएं अभी इस विमर्श में व्यस्त थे कि आखिर होगा क्या? तब राम भरत को समझाते हुए कहते हैं कि रघुकुल की रीति तो तुम जानते ही हो। वचन पालन से बढ़कर कुछ भी नही है। फिर तुमको भी सिर्फ एक अवधि भर की कठिनाई है। राम के समझाने पर भरत मान तो जाते हैं, लेकिन श्रीराम से उनकी खड़ाऊं मांग लेते है।
भरत अयोध्या लौटने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने जाने से पूर्व चित्रकूट के पावन स्थलों को देखने की इच्छा व्यक्त की। अत्रि मुनि के कहने पर भरत ने पहाड़ के समीप स्थित एक कूप में श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए लाए गए सभी तीर्थों का जल रख दिया। मुनि ने उसको भरत कूप नाम दिया। इसकी महिमा राम ने सब को बताते हुए कहा कि इस कूप के जल के सेवन से नर जाति रोग व्याधि मुक्त रहेगी। चित्रकूट परिक्रमा के पश्चात भरत ने राम से कहा कि हमारी इच्छा पूरी हुई अब आप आज्ञा दीजिए। श्रीराम फिर उनको समझाते है और अपना खड़ाऊं उतार कर भरत को दिए।
इसे पाकर भरत बहुत प्रसन्न हुए और अयोध्या वापस चल पड़े। सभी को विदा करके राम अपनी कुटिया में गए और वहां चित्रकूट में राम सीता और लक्ष्मण की आरती हुई। वहां से लीला प्रेमी भरत जी के साथ अयोध्या वापस लौटे जहां भरत ने अयोध्या के राज सिंहासन पर श्रीराम की खड़ाऊं विधि विधान के साथ स्थापित की और शत्रुघ्न को अयोध्या की जिम्मेदारी सौंपकर नंदीग्राम चले गए। वह वहां पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। नंदीग्राम में भरत जी की आरती के साथ लीला को विश्राम दिया गया।