28 मई को नए संसद भवन में स्थापित करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जानें क्या है इस राजदंड का इतिहास

28 मई को नए संसद भवन में स्थापित करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जानें क्या है इस राजदंड का इतिहास

(रणभेरी): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नए भवन का उद्घाटन करेंगे। नए संसद भवन में 'सेंगोल' को स्थापित किया जाएगा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को पत्रकारों से बात करते हुए इसकी जानकारी दी। अमित शाह ने कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन के दिन एक नई परंपरा भी शुरू होने जा रही है। अमित शाह ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 को तमिल पुजारियों के हाथों सेंगोल स्वीकार किया था। अमित शाह के अनुसार नेहरू ने इसे अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था। बाद में इसे नेहरू ने एक म्यूज़ियम में रख दिया था और तब से सेंगोल म्यूज़ियम में ही रखा है। सरकार ने नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया है। शाह ने सेंगोल को लेकर जानकारी भी साझा की और बताया कि इसका भारतीय इतिहास और लोकतंत्र में क्या महत्व है। ब्रिटिश हुकूमत की तरफ से भारत को हस्तांतरित किए गए सत्ता के प्रतीक ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।  सेंगेाल’ अभी इलाहाबाद में एक संग्रहालय में है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ‘सेंगोल’ लिया था. अमित शाह ने आगे कहा, ‘सेंगोल’ स्थापित करने का उद्देश्य तब भी स्पष्ट था और अब भी है. सत्ता का हस्तांतरण महज हाथ मिलाना या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना नहीं है और इसे आधुनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय परंपराओं से जुड़ा रहना चाहिए। गृहमंत्री ने बताया कि संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री संसद भवन के निर्माण में योगदान देने वाले 60,000 श्रमिकों (श्रम योगियों) को सम्मानित भी करेंगे. शाह ने कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए सभी राजनीतिक दलों को निमंत्रण भेजा गया है और वे अपने विवेक के अनुसार कदम उठाने को स्वतंत्र हैं। 

राजदंड को तमिल में सेंगोल कहा जाता है. इसकी गहरी जड़ें देश की परंपरा में समाहित है, क्योंकि अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण में इसका इस्तेमाल हुआ था. आइए जानते हैं कि सेंगोल का भारतीय इतिहास में क्या महत्व रहा है और कैसे ये आजादी का एक प्रतीक बन गया. आजादी मिलने के बाद जब सत्ता हस्तांतरण की बात सामने आई तो लॉर्ड माउंट बेटन ने इसके लिए जवाहरलाल नेहरू से बात की. उन्होंने पूछा कि किस प्रतीक के साथ स्वराज्य को सौंपा जाए. इसके बाद हस्तांतरण को लेकर नेहरू ने स्वतंत्रता सेनानी सी राजा गोपालचारी से सुझाव मांगा, तब उन्होंने नेहरू को सेंगोल के बारे में जानकारी दी.
तमिलनाडु का चोला साम्राज्य भारत का एक प्राचीन साम्राज्य था. तब चोला सम्राट सत्ता का हस्तांतरण सेंगोल सौंपकर करते थे. भगवान शिव का आह्वाहन करते हुए राजा को इसे सौंपा जाता था. नेहरू को राजा गोपालचारी ने इसी परंपरा के बारे में बताया। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल परंपरा के तहत सत्ता हस्तांतरण की बात को स्वीकार किया और तमिलनाडु से इसे मंगाया गया. सबसे पहले सेंगोल को लॉर्ड माउंट बेटन को ये सेंगोल दिया गया और फिर उनसे हत्तांतरण के तौर पर इसे वापस लेकर नेहरू के आवास ले जाया गया. जहां गंगाजल से सेंगोल का शुद्धिकरण किया गया. उसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ नेहरू को इसे सौंप दिया गया। इसके बाद कभी भी सेंगोल का ज्यादा जिक्र नहीं हुआ. जब बीआर सुब्रमण्यम ने अपनी किताब में इसके बारे में बात की तो सेंगोल चर्चा में आया. तमिल मीडिया में इसकी खूब चर्चा हुई. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी जांच और इतिहास के बारे में पता लगाया. पता चला कि सेंगोल प्रयागराज के इलाहाबाद संग्राहलय में मिला और फिर इसे वापस लाने का फैसला लिया गया। संगोल का अर्थ तमिल भाषा के सिम्मई शब्द से आता है जिसका अर्थ नीति परायणता है. सेंगोल को नई संसद में लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा. अब सेंगोल को देश के पवित्र राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर जाना जाएगा।