काव्य -रचना
माई बाप अब सबके बोझ हो गइले
माई बाप अब सबके बोझ हो गइले
अपने ही घर मे जहर हो गइलें
गउवा के भी अब शहरिया जइसन हाल हो गइल
माई बाप के जीते जी लइका सब अलग हो गइल
अब एकहि घरमे कइठे घर हो गइल
अब माई बाप के बात सबके जहर हो गइल
जे पूरा घरके खर्चा चलावल
अब चारगो लइकन मे सबके बोझ हो गइल
घर घर के इहे हाल हो गइल
अब गउवा के भी शहरिया जइसन हाल हो गइल
घर दुवार सब बनाके अपने ही घरसे बेघर हो गइले
जबसे लइका सब अलग हो गइले
अपने दम पर जी गइले इतना दिन
अब बुढ़ापा मे जाकर केवन देखे के दिन मिल गइल
अब दाना पानी केहू पूछत नइखे
अब माई बाप के बात केहू सुनत नइखे
अब माई बाप के खियावल सबके बोझ हो गइल
अब एकहि घरमे चारगो द्वार हो गइल
इ कइसन लोग इ कइसन जमाना आ गइल
भाई के दुश्मन भाई भाई हो गइल
अब माई बाप सबके बोझ हो गइलें
आपने ही घरमे जहर हो गइलें
महेश कुमार प्रजापति