काव्य -रचना

काव्य -रचना

     राधा की चुनौती : फागुन          

हो गर साहस तो फिर आओ कभी घनश्याम मुरलीधर।
ज़रा देखूं तुम्हारा प्रेम आओ बरसाने मेरे घर ।
तुम्हे भींगो के रंगों मे के खेलूं फगुआ मै ऐसे ।
चढ़ेगा भूत ना ऐसा कभी दोबारा फिर सर पर। 

और ऐसे मै मेरे श्याम तुम पर रंग डालूंगी।
ये होली ही है ऐसी की मै तुमपर प्रेम वारुँगी ।
मगर नटखट से जो तुम हो ज़रूरी बाकपन है फिर ।
पिलाउंगी मै भंग तुमको हृदय से फिर लगाऊँगी ।

अबीर और गुलालों की करुँ बारिश जो मै तुमपर ।
खड़ी सखियां जो हो सम्मुख लिये पिचकारीयां भरकर।
मै इतना रंग जो दूंगी चढ़ेगा रंग ना ऐसा।
के बरसाने के रंग और भंग फिर छाजायेंगे सर पर।

के तेरी शर्तों को राधा अब तो मै स्वीकारता हुँ ।
तेरी साहस की बातों को आज अभी झूठलाता हुँ।
तेरी गलियों मे आऊँगा , तेरे भ्रम मिटाउंगा ।
और फिर आगे क्या होगा मै आज अभी बतलाता हूं।

फ़ूट रहे कोंपल कलियों से और पंछी मुस्काते हैं ।
सूर्य खेलता लाल रंग से हम सब शीश झुकाते हैं ।
भँवरे खेलें फूलों के रंग से जीवन खुशरंग बनाते हैं ।
खेल रहे होली सब मद मे हम बरसाने आते हैं ।

झुका कर शीश रंग जाऊँ के तुम एक बार तो कह दो।
तुम्हे मैं प्रेम मे रंग दूं तुम्हे है प्यार तो कह दो ।
तुम्हारे कदमों के राधे ये तीनो लोक सेवक हैं ।
मेरा तन मन तुम्हारा है जो जी फिर चाहे तो रंग दो ।


_शौर्या सिंह 'इशिका'