काव्य-रचना
मोहब्बत का हुनर बदलो
अब सियासत में कुछ नज़र बदलो
मुल्क बदलेगा तुम अगर बदलो
बांटने का हुनर वो रखता है
मुत्तहिद हो के ये हुनर बदलो
सोने वालों उठो ज़रा चल कर
ज़ुल्म की शाम और सहर बदलो
जिसमें फरियाद न सुनी जाये
आओ मिलकर के वो नगर बदलो
नफरतों से किसी को क्या हासिल
हम इधर और तुम उधर बदलो
घुल गया है फ़ज़ा में जो कैफ़ी
अब मुहब्बत से वो ज़हर बदलो
मतीन कैफ़ी