काव्य रचना
हैवान
इन भोली सूरत के पिछे, है हैवान बसा
क्या है? तुझको पता।
भोली सूरत काले नैना, है चाल मस्त मौला,
दिन को है बेवाक वो घूमें, जैसे कोई परिंदा।
शाम को लौटें घर को आएँ, दिए काम को अंजाम,
ऐसी-ऐसी बात वो करते, लगता है कोई इंसान।
तुझको लूटा मुझको लूटा, सब घर को किया सुनसान,
फिर भी न समझे ये नादान, कहाँ है ये हैवान...?
आनन्द कुमार 'आनन्दम्'