काव्य - रचना

काव्य - रचना

हाथों में है किताब मेरे। 

उतरेंगे नकाब तेरे।
सुन तो ले जवाब मेरे॥

भरे थे तो क़द्र न जानी,
सूखे अब तालाब तेरे।

अपने खाते मत खुला,
कच्चे है हिसाब तेरे।

देख चकित रह जायेगा
मित्र है दगाबाज़ तेरे।

काँटों से पथ तू सजा,
ताज़ा है गुलाब मेरे।

रख तलवारे तू संभाले,
हाथों में है किताब मेरे।

जो चाहेगा 'सौरभ' बुरा,
सितारे हो ख़राब तेरे॥

प्रियंका 'सौरभ'