काव्य-रचना

काव्य-रचना

वह मजदूर है 

थक हार जाता है हर रोज फिर भी काम पर जाता हैँ 
कोइ   छुट्टी   ना   कोइ   इतवार   मनाता हैँ
वह मजदूर हैँ जो मजदूर होने की कीमत चुकाता हैँ,

 दुसरो    के   झोपड़ी  को  वह महल बना देता है 
अपने लिए झोपड़ी का भी इंतजाम नहीं कर पाता है 
चौक  चौराहे  पर  अक्सर   वह  दिख जाता है 

इनके हिस्से मे कोइ ख़ुशी ना कोइ त्यौहार आता है 
छला गया वर्षो इनको बस गुमराह बनाया जाता है 
इनके हालात को कोई टीवी ना अख़बार दिखाता है

अब उसे अपना   हक अधिकार   कहा मिलता है 
अब मजदूरों के मुद्दे पर अब कोइ बात कहा करता है 
मेहनत मजदूरी के दम पर दो रोटी का इंतजाम करता

दो वक़्त के रोटी के खातिर गर्मी बरसात नहीं देखता है
उसे   कोइ   छुट्टी   ना  कोइ  अवकाश मिलता है 
जो   हमेशा   देश   के   विकास  मे साथ देता है  

कुर्सी   के   खातिर  इन्हे  मुद्दा बनाया जाता है 
इनके मजबूरी का हमेशा फायदा उठाया जाता है 
सब कुछ मिला इन्हे पर  अधिकार ना मिला 

काम तो मिला पर काम के बदले दाम ना मिला 
सबको   पता   है   आज   मजदूर  दिवस है 
पर   आज  भी  इन्हे  अवकाश ना मिला 

-महेश कुमार प्रजापति