काशी में शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री के दर्शन कर श्रद्धालु हुए निहाल, जयकारे से गूंजा धाम
वाराणसी (रणभेरी): देवी मां दुर्गा की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र आज से आरंभ हो गई है। नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं, लेकिन उन्होंने रहने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी को चुना। बनारस में वरुणा नदी के किनारे मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर है। पूरे भारत में ये इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मां खुद से विराजमान हुईं। जबकि दूसरे शक्तिपीठों में मां की प्रतिमा और पिंडियों के दर्शन होते हैं।यह मंदिर वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूर अलईपुरा कस्बे में हैं।
काशी का प्राचीन शैलपुत्री मंदिर दूसरे शक्तिपीठों से काफी अलग है। यहां मंदिर के गर्भग्रह में मां शैलपुत्री के साथ शैलराज शिवलिंग भी मौजूद है। पूरे भारत का यही एकमात्र ऐसा भगवती मंदिर है, जहां शिवलिंग के ऊपर देवी मां विराजमान है। मंदिर का रंग गहरा लाल है, क्योंकि यही रंग देवी को पसंद है। मंदिर के चारों तरफ कई छोटे- छोटे मंदिर हैं। इनमें हनुमान, राम-लक्ष्मण-सीता, सती मां और महादेव की पूजा होती है। मंदिर से 150 मीटर पर वरुणा नदी है। नवरात्र के पहले दिन इस मंदिर में पैर तक रखने की जगह नहीं होती। सुबह 8 बजे की मंगला आरती के बाद रात 12 तक भक्त मंदिर में मां शैलपुत्री के दर्शन करते हैं। यहां आने वाले लोग देवी पर लाल चुनरी, लाल फूल और सुहाग का सामान चढ़ाते हैं।
मंदिर सेवा समिति के मुताबिक, हर साल नवरात्र में यहां 5 लाख से ज्यादा लोग पहुंचते हैं। सबसे ज्यादा पहले दिन भीड़ रहती है। इस दिन बाबा विश्वनाथ के मंदिर से ज्यादा भीड़ यहां रहती है। महिलाएं हवन-पूजन कर मां शैलपुत्री से अपने सुहाग की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।काशी में भगवान विश्वनाथ के साथ मां विशालाक्षी और शैलपुत्री विराजती हैं। पूरे देश में देवी शैलपुत्री का सबसे प्राचीन मंदिर काशी में ही है, इसलिए मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यहां देवी की तीन बार आरती की जाती है। प्रसाद में मां का पसंदीदा भोग हलवा-चना और मालपुआ उन्हें अर्पित किया जाता है।