तीखे सवालों की शक्ल में महंगाई का जिन्न बोतल के बाहर

तीखे सवालों की शक्ल में महंगाई का जिन्न बोतल के बाहर
  • सत्तारूढ़ दल के नेता चेहरा बचा रहे, गृहणियों के बेबाक प्रश्नों से कतरा रहे।
  • विकास, कानून व्यवस्था से कोई खास शिकायत नही, कुछ के हिसाब से एक मौका और सही

रण में रणभेरी। अटकाने-भटकाने की तमाम कोशिशों के बावजूद इस बार के विधानसभा चुनाव में कमरतोड़ महंगाई का मुद्दा नकारे जाने की स्थिति में नजर नही आता। खरा-खरा सच यही है कि हिंदू-मुसलमान, जात-पात जैसे शिगूफों से लैस होने व विश्वनाथ कॉरिडोर रूद्रक्ष जैसे नवनिर्माणों के अलावा सड़क पुल गलियों के कायाकल्प जैसी उपल्ब्धियों की सूची लेकर मतदाताओं के द्वार-द्वार दस्तक दे रहें है भाजपा के नेता चुनाव प्रचार के दौरान खुद को सहज नहीं पा रहे हैं। तीखे सवालों की शक्ल में बोतल से बाहर निकलें महंगी के जिन्न से बेहद घबरा रहे हैं। फिर चाहे वह पेट्रोल,डीजल या इंधन गैस की आसमान छूती कीमतें हो अथवा महंगी की अनदेखी के कारण ताव खा रहे दाल, तेल जैसे जिन्सों के भाव। साग-सब्जी की डांवाडोल तराजू हो या फिर दैनिक उपयोग की सामान्य वस्तुओं की मूल्य वृद्धि का मसला। शासन के प्रतिनिधियों के पास इन जिज्ञासाओं का कोई समाधान नही हैं। दरअसल सत्ताधारी नेताओं को अनुमान ही नही था कि सपने दिखानें की उनकी कवायदों के शोर में भी महंगी का मुद्दा इस तरह चीखेगा-चिल्लाएगा कि उनकी कारसाजी धरी की धरी रह जायेगी। पकड़ने के लाख जतन करें इस समस्या की रेत मुट्ठी से इस कदर फिसल जायेगी।

इश्वरगंगी की निवासिनी फैशन डिजाइनर होने के साथ एक कुशल गृहणी अंजू अग्रवाल कहती है सरकार अपने हासिलातों का कितना भी ढोल पीट ले महंगी की मार ने जिस तरह से चूल्हे-चौकों का बजट बिगाड़ा है इसे गृहणियां भला कैसे भूल सकती हैं। उच्च व मध्यम आयवाले परिवारों की बात तो छोड़ दे इस नंगे सच पे भला परदा डाला जा सकता है क्या कि कोढ़ के खाज कोरोना की निर्मम गठजोड़ के चलते निर्धन परिवारों की पीठ व पेट पर पड़ी बेरहम मार के चलते कितने ही परिवारों के चूल्हों पर अभाव का पानी पड़ गया और वे सरकार की ओर से बंट रही खैरात पर पेट पालने को मजबूर हो गये। एक कठोर तथ्य यह भी है कि जिस खैराती अनाज के वितरण को लेकर सरकार अपनी उपलब्धियों का डंका पीट रही है उस खैरात ने न जाने कितने स्वाभिमानी भारतीयों का गुरूर तोड़ दिया। सोनारपुरा निवासिनी एक और गृहणी साक्षी शर्मा कहती है योगी की सरकार भले ही अपनी विरुदावल का स्वयं चाहे कितना भी बखान क्यो न कर ले आमतौर पर सभी गृहणियों की एक मत राय यही रही है कि बेलगाम महंगी ने हर घरके चूल्हे की आंच मध्यम कर दी। साक्षी महिलाओं की सुरक्षा को ले के किये जा रहे सरकारी दावों से भी सहमत नही हैं। उनका कहना है कि अगर वाकई सरकार का प्रवचन ठीक ठाक रहा होता तो चुनाव के समय तरक्की के विज्ञापनों पर जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपए की राशि स्वाहा करने की जरूरत ही नही पड़ती।

उल्लेखनीय यह भी है सोनारपुरा की रहनवार चंद्रावती फरिदपुरा की ममता चंद्रावती यही की दुर्गा देवी पाँडे हवेली की प्रिया पांडे वगैरह जो किसी न किसी कारण से योगी सरकार को पुन: एक बार मौका देने को तैयार है वे भी महंगी के सवाल पर सरकार के खिलाफ तर्जनी उठाती है। वह भी यहां तक कि कभी-कभी आपे से बाहर हो जाती हैं। मदनपुरा की नेमा खातुन रूबी अर्शी का कहना है। 

सरकार धर्म जाति की राजनीति कर रही है मंदिर बनाये जा रहे है गुरबत के मसले पर उसका ध्यान नही है मंदिर बनवाये जा रहे है हमारे जैसे लागों की स्थिति यह है के अपने बच्चों को पढ़ाने तक के पैसे नही है गैस सिलेंडर इतने महंगे है कि हमारी जेब जवाब दे रही है आप यकीन नही करेंगे कि बीस साल बाद की गृहस्थी में पहली बार ऐसा मौका आया है कि हमें फिर एक बार आंगन में लकड़ी से जलने वाला मिट्टी का चुल्हा गढ़वाना पड़ा है। कहने को हम है स्मार्ट सिटी के निवासी पर असल बात यह है कि महंगी के दंश से हमें एक बार फिर आदिमयुग में आना पड़ा हैं।