आधी आबादी अब मांगे पूरी आजादी...
वह रात को अस्पताल में रुकी ही क्यूं...? पत्रकारों के सवाल के जवाब में यह नपुंसक परिप्रश्न था कोलकाता के उस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का जिस कॉलेज के सेमिनार हॉल में काम से थक हार कर आराम कर रही प्रशिक्षु महिला डॉक्टर वहशी दरिंदो की पाश्विकता का शिकार हुई। नाराधमों ने इस निरीह युवती की जान भी ले लीं।
ठीक ऐसा ही निर्लज्ज सवाल पुरुष प्रधान समाज के ठेकेदारों ने कोई साल भर पहले बनारस में आईटी की एक छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद उठाया था। जब उससे पूछा गया कि रात में वह हॉस्टल के बाहर कैंपस में क्या कर रही थी। यानी हमारी कोरी कल्पना के श्रेष्ठ भारत में आज भी महिलाएं बाहर नहीं निकल सकती। अपने ही कार्यस्थल में रात्रि विश्राम उनके लिए वर्जित है। अर्थात- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:...का आदर्श सिर्फ सूर्य के उजालों तक ही प्रभावी है। फिर क्यों न कहें की आजादी के दशकों बाद भी हमारे कस्टम (परंपराएं) दकियानुशी सोच से उबर नहीं पाए हैं। राजनेताओं के तमाम थोथे दावों के बाबजूद हम देश की आधी आबादी को उनमुक्त उड़ान के लिए पूरा आकाश नहीं दे पाए हैं। महिला अधिकारों के संदर्भ में सड़े गले कस्टम के अलावा अब हम पड़ताल करें, अपने चर-मराते सिस्टम की जो बात तो समानता की करता है पर जब बारी आती है महिलाओं के समान अधिकारों के स्वीकारता की तो कछुए की तरह बड़ी बेशर्मी से अपनी गर्दन बेहयाई की खोल में समेट लेता है।
फिर वह चाहे, इस गलीज व्यव्स्था को चुनौती देने वाली स्वर्ण बालाएं विनेश फोगाट या साक्षी मालिक की क्यों न हों। हाल ही में संपन्न पेरिस ओलंपिक में मात्र सौ ग्राम बढ़े वजन के कारण पदक चूक जाने पर सीनाजनी करने वाले क्या नहीं जानते की विनेश की असफलता एक दुर्भी संधि का परिणाम है। क्या यह सच नहीं है की पेरिस रवानगी से पहले हमेशा 53 किलोग्राम भार वर्ग में प्रतिभाग करने वाली विनेश को एक सोची समझी षड्यंत्र के तहत 50 किलो भार वर्ग में नामांकन के लिए मजबूर किया गया।
क्या मल्लिका विनेश का अपराध मात्र इतना ही नहीं था की उसने एक लंपट राजनेता के खिलाफ आवाज बुलंद की, और उसकी मनमानी को खुली चुनौती दी। क्या ये दृष्टांत यह साबित करने को पर्याप्त नहीं कि आजादी के अमृतकाल की अमृतधारा में आकंठ कल्लोल कर रहे राजनेता व नौकरशाहों ने आजादी को अपनी चेरी बना रखा है। आधी आबादी के हको हुकूक पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे हुए हैं ये लोग।
आजादी के इस महापर्व पर आपका अपना अखबार "गूंज उठी रणभेरी" अपने इस विशेष अंक में बयां कर रही है इसी सड़े गले कस्टम व सिस्टम की मारी ऐसी तीन बेबस महिलाओं की व्यथा कथा जिनके लिए आज भी आजादी का मतलब "माननीयों" की स्वेक्षाचारिका के सिवा और कुछ भी नहीं। ... आइए आज फहराते तिरंगे तले इन वामाओं के संग मजबूती से खड़े होकर इनका हौसला बढ़ाते हैं। आधी आबादी अब मांगे पूरी आजादी का नारा बुलंद कर इनकी आवाज के साथ अपनी आवाज मिलाते हैं।
सोने की चिड़िया के पंखों को जब खेल संघ ने कतर दिया
शियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली विनेश फोगाट ने पेरिस ओलंपिक में जो तेज ओज, ऊर्जा और विवेक दिखाया उसे देखते हुए पूरी संभावना बन चुकी थी कि वे 50 किलोग्राम के वर्ग में स्वर्णपदक जीतकर ही अपने वतन वापिस लौटेंगी। आज तक ओलंपिक्स में जिस मुकाम पर कोई भारतीय महिला खिलाड़ी नहीं पहुंची थी वहां तक पहुंचने का रिकार्ड बनाने के बाद विनेश फोगाट ने कुश्ती से संन्यास ले लिया है। अब विनेश कुश्ती के मैट पर कभी नजर नहीं आएंगी। बचपन से ही कुश्ती करने वाली 29 साल की विनेश ने अपने 24 साल के पेशेवर करियर को समेट लिया है।
ओलंपिक्स के नियमों को इस बार विनेश के बहाने सबने समझ लिया लेकिन विनेश के साथ जो हुआ उसे समझने के लिए कोई तैयार नहीं। लोग अभी सपोर्ट स्टाफ से लेकर ओलंपिक संघ, कुश्ती संघ और केंद्र सरकार की भूमिका को लेकर सवाल उठा ही रहे हैं। इन सवालों का संबंध विनेश की घटना से भी है और पेरिस से पहले की तमाम गतिविधियों और विवादों से भी है। जाहिर है उनपर सवाल उठते रहेंगे।
कुश्ती को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कहते हुये विनेश ने अपने ट्वीट में मां को याद किया। जब वह 9 साल की थी तब किसी ने उनके पिता की गोली मारकर हत्या कर दी। इंडियन एक्सप्रेस के संदीप द्विवेदी ने लिखा कि विनेश ने उस दिन को याद करते हुए कहा था उस दिन ने विधवा हुई मेरी मां से उसके मुस्कुराने का अधिकार छीन लिया। उसी मां ने एक जीवट बेटी को कुश्ती के लिए तैयार कर दिया। संन्यास की घोषणा करते हुए विनेश ने लिखा है ह्यमां कुश्ती मेरे से जीत गई, मैं हार गई...माफ करना, आपका सपना मेरी हिम्मत सब टूट चुके, इससे ज्यादा ताकत नहीं रही अब। अलविदा कुश्ती 2021-2024, आप सबकी हमेशा ऋणी रहूंगी, माफी!ह्ण
विनेश फोगाट पर फिल्म दंगल-2 बनी तो...
विनेश फोगाट एशियाई खेलों में एक बार स्वर्ण पदक, राष्ट्रमंडल खेलों में तीन बार स्वर्ण पदक सहित विश्व चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीत चुकी है। विनेश फोगाट गीता, संगीता और बबीता फोगाट बहनों के परिवार से आती हैं। इन्ही तीन बहनों पर दंगल फिल्म बनी। इंडियन एक्सप्रेस में संदीप द्विवेदी ने लिखा है अगर कभी विनेश फोगाट पर दंगल-2 फिल्म बनी तो उसकी कहानी के उतार चढ़ाव के अनेक प्रसंग आपको एक खुशी से भर देंगे। गीता, बबीता, रितु और संगीता महावीर फोगाट की बेटियां हैं, प्रियंका और विनेश उनके छोटे भाई राजपाल की बेटियां हैं। राजपाल फोगाट की मृत्यु के बाद महावीर फोगाट ने उनकी बेटियों की परवरिश की। गीता, बबीता, विनेश तीनों राष्ट्रमंडल खेलों में अलग-अलग श्रेणियां में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। प्रियंका ने एशियाई खेलों में रजत पदक जीता है।
खेल मंत्री की तरह अगर महावीर फोगाट भी आ जाए और आपको बताने लग जाए कि उन्होंने अपनी भतीजी विनेश के फ्रॉक की सिलाई पर कितना खर्च किया। फ्रॉक का कपड़ा कहां-कहां से लाया, कितना खर्चा किया। विनेश के जन्मदिन पर कितने पैसे का केक आया, स्कूल की कितनी फीस भरी और बस्ता खरीदने में कितना पैसा लग गया तो आप सुनने वाले भी शर्म से डूब जाएंगे। मगर महावीर फोगाट ने कभी ऐसा नहीं किया क्योंकि मोदी सरकार के खेल मंत्री नहीं हैं। हम खेल मंत्री मनसुख मांडवीया के हिसाब की भी बात करेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने विनेश के जीतने पर ट्वीट क्यों नहीं किया?
लोग यह भी समझ नहीं पा रहे हैं कि विनेश ने एक दिन में 3-3 कुश्ती जीती लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का एक भी ट्वीट क्यों नहीं आया? लेकिन जैसे ही विनेश अयोग्य ठहरा दी गई... प्रधानमंत्री मोदी का अंग्रेजी में ट्वीट आता है हिंदी में भी नहीं। मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई को हिंदी में करने की घोषणा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी हरियाणा की कुश्ती की खिलाड़ी के लिए अंग्रेजी में ट्वीट करते हैं। वह भी शशि थरूर की अंग्रेजी से भी अच्छी अंग्रेजी। बल्कि शशि थरूर ने तो बोलचाल की हिंदी में विनेश के लिए ट्वीट किया है। थरूर ने लिखा कि ह्यइस सिस्टम से पक गई है ये लड़की, लड़ते-लड़ते थक गई है ये लड़की...। सॉरी विनेश!ह्
जो व्यक्ति छींकते भी है तो अंग्रेजी में,उनका ट्वीट हिंदी में है और जिनकी सारी राजनीति हिंदी से है उनका ट्वीट अंग्रेजी में है। प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट के समय को भुलाया नहीं जा सकता उनके शब्द सहानुभूति और संवेदना के शब्द तो थे मगर स्वर सुनाई नहीं दे रहे थे। अगर इसी ट्वीट के पहले प्रधानमंत्री मोदी जीत की बधाई दे चुके होते तो शायद इसे लेकर विश्वास भी बनता कि वह वाकई दिलासा दे रहे हैं। लोग जानते हैं कि कब-कब दिलासा देना ठीक होता है और कब-कब ठीक नहीं। पितृ पुरुष जब सांत्वना देता है तो वह इस नेक काम के साथ-साथ जाने-अनजाने में पितृ सत्ता के लक्षणों को भी व्यक्त करता है या जता रहा होता है। अगर प्रधानमंत्री जीत के समय बधाई देते तब शायद उनके सांत्वना के शब्दों को पितृ सत्ता और राज सत्ता के लक्षणों से जोड़कर नहीं देखा जाता। आप उनके इस ट्वीट को विनेश के साथ के संबंधों और संयोगों के बिना नहीं देख सकते।
इस पर बात होनी ही चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने विनेश के जीतने पर ट्वीट क्यों नहीं किया। अब क्या यह माना जाए कि प्रधानमंत्री मोदी विनेश के वजन की प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार कर रहे होंगे। क्या किसी ने उन्हें रोका होगा अभी रुक जाइए, ट्वीट मत कीजिए, बधाई मत दीजिए, ऐसा कुछ हो सकता है। लेकिन उनके खेल मंत्री ने तो तुरंत ही बधाई संदेश ट्वीट कर दिया था स्मरण हो कि दो वर्ष पूर्व 6 अगस्त 2022 को जब विनेश ने राष्ट्रमंडल खेलों में तीसरा स्वर्ण पदक जीता उस दिन प्रधानमंत्री मोदी ने झट से ट्वीट किया था। ह्यविनेश फोगाट द्वारा जीत गया आज का यह गोल्ड मेडल बहुत खास है, वे भारत की बेहतरीन खिलाड़ियों में से हैं और कॉमनवेल्थ में यह उनका तीसरा स्वर्ण पदक है। विनेश खेल में प्रतिबद्धता और उत्कृष्टता की मिसाल है उन्हें बधाई। लेकिन 6 अगस्त 2024 को विनेश फोगाट पेरिस में तीन-तीन कुश्तियां जीत जाती है प्रधानमंत्री बधाई का संदेश नहीं देते हैं। बहरहाल विनेश ने संन्यास लेकर उन चंद लोगों को राहत देदी है जो उसकी जीत से मुश्किल में पड़ जाते थे। अब फोन करने का मीम कभी नहीं बनेगा न विनेश की जीत को लेकर बृजभूषण सिंह को शमिंर्दा किया जाएगा। विनेश के संन्यास से ऐसे लोगों को काफी फायदा हुआ है। छोटा सा ही सही एक तबका तो है ही इस देश में जो विनेश को पदक न मिलने पर खुश है। और अनाप शनाप लिख रहा है।
एक खिलाड़ी के दिन रात की मेहनत को सरकार ने अपने पैसे की गिनती से तौल दिया
याद रखिये आप जिस देश में रहते हैं यहां पर ओलंपिक संघ के खिलाफ, कुश्ती संघ के साथ के खिलाफ कार्रवाई की बात में ऊर्जा मत गवाइए। विनेश की कहानी को देखते समय बस इन बातों का ध्यान रखिये। विनेश के संन्यास के साथ अब भारत सरकार को भी विनेश के खर्चे का बही खाता हमेशा हमेशा के लिए बंद करना पड़ेगा। 2020 के टोक्यो ओलंपिक से लेकर 2024 के पेरिस ओलंपिक तक भारत सरकार ने जितना भी खर्च किया सब का सब गिना दिया। अगर विनेश के खर्चे में कोई हिसाब रह गया हो जैसे आटो का भाड़ा, मैट लाने में ई-रिक्शा का भाड़ा, टेंपो का भाड़ा, कॉफी का एक दो बिल रह गया हो तो उसके लिए सरकार को संसद का एक विशेष सत्र बुलाकर सारा का सारा हिसाब भी सार्वजनिक कर देना चाहिए। यह भी तो बताया ही जा सकता है कि 2021 ओलिंपिक खिलाड़ियों को प्रधानमंत्री निवास पर आइसक्रीम और चूरमा खिलाने में कितना खर्चा आया और विनेश की आइसक्रीम की कीमत क्या थी विनेश फोगाट ने सन्यास लेकर खेलमंत्री को वित्त मंत्री के काम से मुक्ती दे दी। आपने संसद में उनका बयान सुना होगा। उनके ही बयान से पता चलता है कि टोक्यो और पेरिस ओलंपिक में खर्चे में बहुत ज्यादा अंतर आ गया है। खेल मंत्री ने बताया कि पेरिस ओलंपिक्स के लिए महान भारत सरकार विनेश फोगाट को 70 लाख 45 हजार 775 रुपए की वित्तीय सहायता दी। 2020 के टोक्यो ओलंपिक्स चक्र में एक करोड़ 13 लाख 98 हजार 224 रुपए का आर्थिक सहयोग किया गया था। यहाँ गौर करिये कि चार साल बाद का खर्चा करीब 30 लाख कम हो गया। इस महंगाई में दो ओलंपिक के बीच 30 लाख कैसे कम हो गया मंत्री जी।
आर्थिक सहायता से सरकार ने विनेश को सक्षम किया। यह मंत्री जी के शब्द है। विनेश कुछ भी नहीं की! आर्थिक सहायता ने उसे सक्षम बनाया। एक खिलाड़ी के दिन रात की मेहनत को सरकार ने अपने पैसे की गिनती से तौल दिया। बता दिया कि वित्तीय सहायता से उसे सक्षम किया गया। इतने प्रतिभाशाली मंत्री को अगली बार वित्त मंत्री जरूर बनना चाहिए।
विनेश फोगाट के संन्यास को लेकर उनकी चुप्पी कई सवाल खड़े करते हैं?
पदक छीन जाने के पहले की प्रतिक्रियाओं को याद कीजिए। विनेश के फाइनल में पहुंचने की खबर ने हर किसी की प्रतिक्रिया को रचनात्मक बना दिया। उसकी जीत को लेकर लोग खूबसूरत तरीके से बयां करने लगे। अचानक लगा कि विनेश ने सबकी कल्पनाओं और लिखने का लेवल बढ़ा दिया है। हर कोई उसकी कुश्ती में इंसानी जज्बे के उत्कृष्ट भावों को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। ऐसा क्रिएटिव शर्मा था कि पूछिए मत!
प्रधानमंत्री के ट्वीट को खुद खेल मंत्री ने भी बेमतलब का साबित कर दिया था जब पत्रकारों ने उनसे विनेश फोगाट के संन्यास को लेकर पूछा। खेल मंत्री ने जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा। अपनी कार में बैठकर चले गए। उनका वीडियो ट्विटर पर वायरल भी हुआ। एक दिन पहले संसद में विनेश को देश की बेटी बताने वाले मंत्री जी के पास अगले दिन बेटी के लिए दो शब्द भी नहीं थें। संन्यास का फैसला किसी भी खिलाड़ी का निजी फैसला होता है तब भी मंत्री जी विनेश फोगाट के लिए दो शब्द बोल सकते थे। संन्यास की खबर के बाद खेल मंत्री ने विनेश के बारे में ट्विट तक नहीं किया। एक खिलाड़ी को लेकर इस सरकार की चुप्पी, उलझन और कई बार बेरुखियों को समझने की जरूरत है। अब ऐसा भी नहीं है कि खेल मंत्री का खिलाड़ियों से कोई संबंध नहीं। उन्होंने स्वयं 8 अगस्त को मनुभाकर के साथ मुलाकात की तस्वीरें ट्वीट किया फिर विनेश फोगाट के संन्यास को लेकर उनकी चुप्पी कई सवाल खड़े करते हैं? अब तो पत्रकारिता के चेहरे 4-5 एंकर, उनके चार-पांच मालिक और उनके साथ प्रधानमंत्री मोदी होते हैं। लेकिन अखबारों के पिछले पन्ने पर ढकेल दिए गए खेल पत्रकारों की लेखनी से पता चला कि खेल पत्रकारिता में कितनी रचनात्मकता है और पत्रकारिता कितनी बची हुई है। बिल्कुल वैसी की वैसी जैसी होनी चाहिए।
वो नतीजे की परवाह किये बिना सिस्टम से भिड़ जाती हैं
विनेश में कुछ ऐसा है जो उन्हें दूसरे भारतीय खिलाड़ियों से अलग बनाता है। उनमे एक ऐसा जज्बा और विश्वास है कि वो नतीजे की परवाह किये बिना सिस्टम से भीड़ जाती हैं। पेरिस ओलंपिक में उनके मैच देख रहे लोग बात कर रहे हैं कि वही गुस्सैल जज्बा यहां दिखाई दे रहा है जब वे विश्व में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों से सीधे भिड़ जा रही हैं। अपना बाउट जीतने के बाद वे तारीफ या तालियाँ सुनने के लिए रूकती नहीं थीं। अपनी जलती हुई सुर्ख आंखों से वे चारो ओर देखतीं, लम्बी सांस भारती और वापसी वाली सुरंग में लौट जाती। पेरिस में जैसे अपने अंदर भरे आक्रोश को विनेश ने व्यवस्थित ढंग से बाहर निकलने का एक मौका दे दिया। सुसाकी कभी नहीं हारी थीं, लेकिन विनेश के सामने आते ही सब बदल गया। सुसाकी जैसी महान पहलवान को भी समझ नहीं आया, वे स्तब्ध रह गयीं कि आखिर यह हुआ क्या? शायद उनका सामना कभी ऐसी खिलाड़ी से नहीं हुआ था जिसमें इतने सालों का गुस्सा इतना आक्रोश भरा था। इस मैडल की विनेश से ज्यादा मारक भूख शायद किसी और को नहीं होगी। अपने कई विद्रोह से साक्षात्कारों में से एक में विनेश ने कहा था मैं सीधे उसकी आंख में देखूंगी और मेडल लेकर आऊंगी मैं। तू देख ! भले ही मेडल ना आया हो, लेकिन एक बेहद जरूरी बात साबित की जा चुकी है।
यह संदीप द्विवेदी ने लिखा है। क्या ऐसा ब्यौरा आपको किसी भी गोदी मिडिया के किसी एंकर से सुनाई दिया? क्योंकि वे जल्दी में थें प्रधानमंत्री मोदी को बचाने की और वह विनेश के प्रति नकली सहानुभूति दिखाने की। उनके पास भले दर्शकों की भरमार है लेकिन एक भी चैनल पर ऐसी अभिव्यक्ति आपको नहीं मिलेगी।
टूटे सपनों की डायरी में एक और पन्ना जुड़ गया
इंडियन एक्सप्रेस के मिहिर वास्वदा लिखते हैं ह्यविनेश के टूटे सपनों की डायरी में एक और पन्ना जुड़ गया है। वह अपनी ख्याति के अंतिम चरण से लौटा दी गयी। दुनिया के सबसे बड़े मंच पर सदमों का जो इतिहास रहा है उसमें यह सबसे गहरा सदमा है। मिहिर वास्वदा ने उस रात का ब्यौरा लिखा है जब विनेश फोगाट अपना वजन कम करने की कोशिश कर रही थी। एक पदक को हासिल करने की चाह यातनाओं की किन गलियों से गुजरती है उसे समझने के लिए आपको खेल पत्रकारों को पढ़ना पड़ेगा। मिहिर वास्वदा लिखते हैं कि उसने खून तक निकालने का फैसला कर लिया। मगर ऐसा हुआ नहीं। अपने बाल तक काट लिए और रात भर साइकलिंग करती रही जॉगिंग स्किपिंग करती रही। उस रात का एक-एक पल तलवार की तरह उसके शरीर को काट रहा होगा और वह पूरी रात जागी रही।
विनेश फोगाट को अगर कोई मात देने की क्षमता रखता है तो वह खुद विनेश फोगाट हैं
इसी प्रसंग पर जनाथन सेलवराज लिखते हैं- 'वजन कम करने की उनकी रणनीति किसी फौजी अभियान से भी अधिक बारीक थी। वे लगातार दूसरे दिन वजन करवा रही थी। वजन कम करने में बहुत सारा विज्ञान होता है लेकिन भाग्य और अनुमान की भूमिका भी पूरी तरह नकारी नहीं जा सकती। जैसे-जैसे रात गहराती गई समझ में आने लगा कि कुछ बहुत गलत हो गया है। जब हफ़्तों के हाइड्रेशन के बाद शरीर को पानी मिलता है वह उसे पूरा सोख लेता है ऐसे में शरीर से पेशाब में पानी निकलना भी असंभव हो जाता है। पिछली रात विनेश पूरी रात जागती रहीं। 6 घंटे तक ट्रेडमिल पर दौड़ती रही और बाकी 3 घंटे तक साना में रही। एक बूँद पानी नहीं पिया। खाने का एक कौर नहीं चखा। हर कुछ घंटों के बाद वो वजन तोलने की मशीन पर खड़ी होतीं। वजन कम हो रहा था लेकिन उस गति से नहीं जो होनी चाहिए थी। कोच ने झुंझलाहट में उनकी कास्ट्यूम के नीचे लगी इलास्टिक को काट दिया उनके बाल काटने की सोची फिर काट भी दिया। लेकिन मशीन की सुई अटक गयी। जनाथन सेलवराज लिखते है कि अगले दिन जब एक नॉर्थ कोरिया रेसलर का वजन ज्यादा आया तो उसने अपने गले में उंगली डालकर उल्टी कर दी और पेट में जो कुछ बचा था उसे निकाल दिया आखिरी दिन विनेश को भी जब कुछ समझ नहीं आया तो उसने भी ऐसी कोशिश की लेकिन उसके पेट में कुछ भी नहीं था बाहर क्या आता? वो मशीन पर खड़ी हुयी वजन आया 50.1 किलोग्राम वो एक दूसरी मशीन पर चढ़ी, इस डूबती हुई आस के साथ कि शायद मशीन में कोई गलती हो! कांटा अभी भी 50.1 किलोग्राम पर अटका था। आखिर में साबित हुआ विनेश फोगाट को अगर कोई मात देने की क्षमता रखता है तो वह खुद विनेश फोगाट है।
कोई प्रतिबंध विनेश को नहीं हरा पाया पर उस अभागे 100 ग्राम ने जिंदगी भर की उम्मीदों को तोड़ दिया। खेल संघ की राजनीति आपके सामने आ चुकी है मगर अफसोस खेल इस तरह से कभी नहीं आया। जिन लोगों से हम सवाल कर रहे हैं वह किसी बात का जवाब दे ही नहीं रहे हैं। वह कब किसी नदी को देखकर रोने लग जाए और कब किसी पहाड़ के भरभरा कर गिर जाने पर नजर फेर ले पता नहीं चलता। उनका यह ड्रामा मालूम तो है लेकिन विनेश फोगाट के खेल को पत्रकारों ने किस नजर से देखा अब उनकी स्याही से पता चल रहा है। विनेश ने अपनी कुश्ती से हम सभी को समझने और खेल को जीने के अद्भुत क्षण दिए। उसके संन्यास के दिन प्रधानमंत्री का ट्वीट नहीं आना एक बेहद सुखद घटना है। खेल मंत्री मनसुख मांडवीया का ट्वीट नहीं आना उससे भी ज्यादा सुखद घटना है। क्योंकि आता भी तो आप विश्वास नहीं करते क्यूंकि यही उनकी विश्वसनीयता है और यही विनेश की विश्वसनीयता है जो उसने अपनी कुश्ती से हासिल की और जिस कुश्ती से आज उसने संयास ले लिया।
गोल्डेन गर्ल
दुनिया में इतिहास रचा
कुश्ती का इतिहास बचा
शाबाश! विनेश फोगाट
देख रहा ऊपर बैठा गॉड
पीकर साजिश का गरल
बाहर किया गया सरल
फिर भी तुम गोल्डेन गर्ल हो
भारत की कीमती पर्ल हो
पूरा देश तुम्हारे साथ है
अब भी जीत तुम्हारे हाथ है