बलिया का वह गांव जहां 40 से अधिक महिला फुटबॉल खिलाड़ी
बलिया । सोनाडीह की एक दो नहीं, बल्कि राष्ट्रीय (नेशनल टीम) स्तर पर 14, राज्य स्तर पर 16 और सब जूनियर स्तर पर 16 बेटियां फुटबॉल खेल रही हैं। गांव में 40 से अधिक महिला फुटबॉल खिलाड़ी हैं, जो अपने नेक हौसले और मजबूत इरादे के बल पर गांव सहित देश और प्रदेश स्तर पर रोशन कर रही है। नेक हौसले और मजबूत इरादे हों तो सफलता को हौसलामंदों के पैर तक चूमने पड़ते हैं। सफलता अर्जित करने वाले को किसी की बहुत बड़ी मदद की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि सफलता दिलाने वाले को मदद के रूप में केवल उनके हाथ की जरूरत पड़ती है। सफलता अर्जित करने वाले अपनी कड़ी मेहनत के दम पर आसानी से अपने मुकाम को हासिल कर लेते हैं। इसे सच साबित कर रही हैं गंवई परिवेश में पली बढ़ी सोनाडीह गांव की बेटियां, जो सीमित संसाधनों के बीच अपनी ऊंची उड़ान को पंख लगा रही हैं।
जिला मुख्यालय के लगभग 70 किमी दूर पश्चिमी अंतिम छोर पर स्थित सीयर ब्लाक का गांव है सोनाडीह। मां भागेश्वरी-परमेश्वरी का स्थान यहां लगने वाला बड़ा मेला इस गांव की पहचान है। अब यहां की बेटियां गांव के नाम को राष्ट्रीय क्षितिज पर चमका रही है।
इन महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की पारिवारिक हालात बहुत अच्छी नहीं है। इसके बावजूद भी महिला खिलाड़ियों की फुटबॉल के प्रति रुचि और दृढ़ विश्वास उनके सपनों को पंख लगा रहा है।
फुटबॉल प्रेमियों का कहना है कि पहले हर गांव में एक पुरुष फुटबॉल टीम जरूर हुआ करती थी। गांवों में एक-दो बार बड़े आयोजन होते थे। बदलते समय के साथ धीरे-धीरे यह खेल गांवों को विलुप्त हो रहा है। ऐसे में बेटियों का फुटबॉल खेल के प्रति ऐसा जुनून देखते बनता है।
गांव में फुटबॉल के लिए ऐसा माहौल तैयार हुआ है कि अच्छी खासी तादाद में बेटियां प्रतिदिन मैदान में समय से रिहर्सल करती नजर आती हैं। बेसिक शिक्षा के खेल अनुदेशक रामप्रकाश यादव जनपदीय रैली में बच्चों के साथ हिस्सा लेने जाते थे। वहीं से खेल और फुटबाल के प्रति ललक रामप्रकाश और बच्चियों के अंदर पैदा हुई। नियमित अभ्यास से राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाएं निकलने लगीं। सफलताएं मिलीं तो मनोबल बढ़ा। यहां की बच्चियां नेशनल स्तर तक पहुंच गई।
कठिन था संघर्ष
खेल अनुदेशक रामप्रकाश ने बताया कि बहुत कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ा। लोक-लाज की वजह से लोग बच्चियों को खेलने से मना करते थे, लेकिन यदि कुछ कर गुजरने का जुनून है तो कुछ भी संभव है। समय ने सब कुछ आसान कर दिया। शुरूआत में बच्चियों ने खोखो, कबड्डी, वालीबाल खेला।
इसी बीच फुटबॉल खेलने की जिज्ञासा पैदा हुई। कई चोटिल होने की वजह से डरने लगीं। शुरू में चार खिलाड़ी आंचल, निगम, प्रीति व नीतू पांडेय ने बूट पहनकर फुटबॉल खेलना शुरू किया। अन्य बच्चियों में चोटिल होने का भय समाप्त होने लगा।
चार बार विजेता व चार बार उपविजेता रह चुकी हैं सोनाडीह की बेटियां
सोनाडीह गांव की बेटियों का फुटबॉल खेल के प्रति इतना गहरा लगाव है कि उन्होंने अपने कठिन परिश्रम के दम पर प्रदेश स्तर पर सभी 18 मंडलों को पछाड़ कर चार बार विजेता हुईं। चार बार उपविजेता भी रहीं। मंडल की टीम में सोनाडीह गांव की ही लड़कियां खिलाड़ी होती हैं।
12 बेटियां अब तक समय समय पर राष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर चुकी है। इनमें निगम, आंचल, नीतू पांडेय, ज्योति, रुक्मणी, सरिता, प्रिया, नेहा, सलोनी शर्मा, सलोनी, सलोनी राजभर व सोनम शामिल हैं। फिलहाल सरिता, प्रिया, सलोनी शर्मा, नेहा व सलोनी आगामी आयोजित होने वाली राष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए कैंप पर हैं। अन्य अपनी पढ़ाई के साथ फुटबॉल प्रैक्टिस कर रही हैं।