डीएम साहब ! रिजवान के अवैध व अपराधिक कृत्यों को क्यों दिया जा रहा संरक्षण ?

डीएम साहब ! रिजवान के अवैध व अपराधिक कृत्यों को क्यों दिया जा रहा संरक्षण ?
  • एचएफएल एरिया में बेधड़क खड़ी की जा रही इमारत
  • विजया के सामने लबे रोड रिजवान करा रहा अवैध निर्माण 
  • नक्शा पास का फर्जी बोर्ड लगाकर बना दिया चारमंजिला भवन 
  • बृज इंक्लेव कॉलोनी में कब्रिस्तान की जमीन पर बनाया है 16 अवैध फ़्लैट 
  • कूटरचित दस्तावेज तैयार करने वाले गिरोह से जुड़े है रिजवान के तार

अजीत सिंह 

वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी का एचएफएल एरिया इन दिनों सुर्खियों में है। वजह है एक ऐसा शख्स जो न सिर्फ कानून की धज्जियां उड़ा रहा है, बल्कि सरकारी मशीनरी की नाक के नीचे बेधड़क इमारतें खड़ी कर रहा है। हम बात कर रहे हैं रिजवान की। वही रिजवान जिसने भेलूपुर के विजया मॉल के सामने मुख्य सड़क पर चार मंजिला इमारत खड़ी कर दी, वह भी बिना मानचित्र स्वीकृति के। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस शातिर व्यक्ति द्वारा निर्माण स्थल पर नक्शा पास होने का एक फर्जी बोर्ड भी लगा दिया जाता है , ताकि आम लोग सहित अन्य विभाग के अधिकारी भी गुमराह हो सकें। लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है। सूत्रों ने बताया कि रिजवान का नेटवर्क केवल एक-आध निर्माण तक सीमित नहीं है। नवाब गंज में के एचएफएल एरिया में 18 आलीशान डुप्लेक्स खड़े कर दिए गए जिनमे एक शानदार डुप्लेक्स (सी-17) रिजवान को वीडीए की सेटिंग गेटिंग तथा उक्त भूमि का कूटरचित दस्तावेज तैयार कराने के एवज में अल्ताफ अंसारी एवं सद्दाम हुसैन ने द्वारा दिलाया गया है। सूत्र बताते हैं कि उक्त रजिस्ट्री में भी स्टाम्प चोरी के साथ ब्लैक मनी का लेन-देन हुआ है।  वहीं बृज इंक्लेव कॉलोनी में अल्ताफ अंसारी एवं सद्दाम हुसैन के साथ मिलकर रिजवान ने कब्रिस्तान की जमीन पर 16 अवैध फ्लैट बना दिए । सबसे बड़ी बात कि यह सब कुछ कूटरचित दस्तावेजों और फर्जीवाड़े के जरिए किया गया है, जिसमें रिजवान के तार कथित रूप से फर्जी दस्तावेज तैयार करने वाले एक संगठित गिरोह से जुड़ा होना बताया जा रहा हैं। एक अहम् सवाल यह है कि जब इतने सारे सबूत और शिकायतें सामने हैं, तो शासन सहित जिला प्रशासन और विकास प्राधिकरण आंखें क्यों मूंदे हुए हैं ? क्या यह सिर्फ लापरवाही है या फिर संरक्षण देने वालों की एक संगठित चुप्पी ?

विजया मॉल के सामने लबे सड़क बेधड़क खड़ा हो गया चारमंजिला अवैध भवन

पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के भेलूपुर क्षेत्र अंतर्गत एचएफएल इलाके में एक ऐसा निर्माण सामने आया है, जिसने प्रशासनिक कार्यप्रणाली और कानूनी व्यवस्था दोनों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। विजया मॉल के ठीक सामने, शहर की व्यस्ततम सड़कों में से एक पर, रिजवान नामक व्यक्ति द्वारा चार मंजिला अवैध इमारत का निर्माण प्रगति पर है। इस निर्माण का न तो वैध नक्शा पास है और न ही किसी अधिकृत विभाग से अनुमोदित है । लेकिन, इमारत के सामने बड़े गर्व से ‘नक्शा पास है’ का एक बोर्ड लगा है, जिससे पता चलता है कि न केवल कानून को ठेंगा दिखाया जा रहा है, बल्कि जनता और अधिकारियों की आंखों में धूल भी झोंकी जा रही है। सूत्रों के अनुसार, यह निर्माण रातों-रात नहीं हुआ। महीनों से यह इमारत खड़ी की जा रही थी, और इस पूरे समय के दौरान किसी भी अधिकारी ने वहां जाकर न जांच की और न कोई कार्रवाई की। वजह साफ है...रिजवान की सेटिंग । सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रिजवान की पैठ वीडीए के जोनल से लेकर उच्चाधिकारियों तक है। रिजवान अपनी सेटिंग के दम पर वीडीए के अधिकारियों को लगाम लगाने का हुनर रखता है। यही वजह है कि वीडीए के मक्कार अधिकारी भी रिजवान के भवन को छूने से परहेज करते हैं। चर्चा है कि रिजवान को ऊंचे स्तर के अधिकारियों का भी संरक्षण प्राप्त है। सूत्रों का कहना है कि यह संरक्षण केवल प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम नहीं, बल्कि सुनियोजित मिलीभगत का हिस्सा है। 

कूटरचित दस्तावेज़ तैयार करने वाले संगठित गिरोह से जुड़े हैं रिजवान के तार

फर्जी नक्शा, जाली दस्तावेज़, झूठी रजिस्ट्री, वीडीए की आंखों में धूल झोंककर रच रहा भूमाफिया खेल

जब वाराणसी जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक शहर में कोई व्यक्ति बार-बार नियमों की धज्जियां उड़ाता हो, अवैध निर्माण करता हो, धार्मिक भूमि पर कब्जा कर लेता हो और फिर भी प्रशासन मौन बना रहे, तो यह महज एक व्यक्ति का दुस्साहस नहीं, बल्कि संगठित फर्जीवाड़े और संरक्षण का संकेत होता है। यही मामला सामने आया है रिजवान के संदर्भ में, जो केवल इमारतें नहीं बना रहा, बल्कि दस्तावेज़ों की फर्जी फैक्ट्री चला रहा है या उससे जुड़ा हुआ है। विभागीय सूत्रों से सामने आई जानकारियों के अनुसार, रिजवान का नाम वाराणसी के एक ऐसे गिरोह से जुड़ा है जो कूटरचित दस्तावेज़ बनाने में माहिर है। ये गिरोह खाली पड़ी सरकारी या वक्फ ज़मीन की पहचान करता है, फिर उस पर झूठी रजिस्ट्री तैयार की जाती है। इसके बाद फर्जी मालिकाना हक, नक्शा पास होने का बनावटी प्रमाणपत्र और निर्माण अनुमति के कागज़ात बनाए जाते हैं। इन सबका इस्तेमाल कर बिल्डरों को वैधता का आभास कराया जाता है। रिजवान द्वारा विजया मॉल के सामने जो इमारत बनाई गई है, उस पर लगे ‘नक्शा पास है’ के बोर्ड की कोई आधिकारिक पुष्टि वीडीए से नहीं होती। विभागीय सूत्रों की माने तो इस इमारत का नक्शा पास का बोर्ड फर्जी है और इसे गुमराह करने के इरादे से लगाया गया है। इसी तरह बृज इंक्लेव कॉलोनी में कब्रिस्तान की ज़मीन को भी सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी कर रिहायशी ज़मीन दर्शाया गया। इसके लिए पुराने मृत रिकार्ड्स में बदलाव, नकली दाखिल-खारिज, और जाली रजिस्ट्री तैयार की गई। जानकारों के मुताबिक, ऐसे फर्जी दस्तावेज़ों का शुल्क प्रति प्रोजेक्ट लाखों में होता है, जिसमें क्लर्क से लेकर राजस्वकर्मी और दलाल तक शामिल रहते हैं। यह भी सामने आया है कि वीडीए के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के माध्यम से नक्शा स्वीकृति की झूठी फाइलें भी बनवाई जाती हैं, जिनका कोई वास्तविक रिकॉर्ड सिस्टम में दर्ज नहीं होता। ये ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ नक्शे ही निर्माण का रास्ता खोलते हैं। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन गिरोहों की संरचना से वाकिफ है ? क्या जिला प्रशासन और पुलिस के पास इनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं ? और अगर हैं, तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही ? सवाल यह भी है कि क्या रिजवान सिर्फ एक मोहरा है, जिसके पीछे एक बड़ा खेल चल रहा है ?

क्या वाराणसी विकास प्राधिकरण अवैध निर्माण का हिस्सा बन चुका है ?

रिजवान द्वारा किए जा रहे लगातार अवैध निर्माणों ने वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की कार्यशैली और उसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब शहर में बिना नक्शा पास कराए, सार्वजनिक और धार्मिक ज़मीन पर बहुमंज़िला भवन खड़े हो रहे हों, और जिम्मेदार अधिकारी चुपचाप बैठे हों, तब यह स्थिति केवल लापरवाही की नहीं, बल्कि मिलीभगत की प्रतीक बन जाती है। जोनल अधिकारी की भूमिका विशेष रूप से संदेह के घेरे में है। यह वही अधिकारी हैं जिनकी जिम्मेदारी है कि वे क्षेत्र में हो रहे निर्माणों पर नजर रखें, नक्शा पास न होने की स्थिति में निर्माण को तत्काल रुकवाएं और ज़रूरत पड़ने पर विध्वंस कार्रवाई करें। लेकिन विजया मॉल के सामने या बृज इंक्लेव के अंदर कहीं भी इनकी उपस्थिति कार्रवाई के मंशे से दर्ज नहीं हुई। हुई भी तो सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए। क्योंकि कार्रवाई के नाम पर अगर कुछ हुआ तो वह है डील। वीडीए सूत्रों के अनुसार, रिजवान और ज़ोनल अधिकारी के बीच ‘समझदारी’ का पुराना संबंध है। ऐसा नहीं कि अवैध निर्माण की जानकारी नहीं होती, बल्कि कई बार तो निर्माणाधीन इमारतों पर वीडीए की नोटिस चस्पा कर दी गई, लेकिन उसे भी महज दिखावे के लिए लगाया गया, ताकि जनता को लगे कि कार्रवाई हो रही है।

कहीं रिजवान को राजनीतिक संरक्षण तो नहीं ?

वाराणसी की जनता वर्षों से इस सवाल का जवाब मांग रही है आखिर जिला प्रशासन क्यों चुप हैं ? क्या उन्हें जानकारी नहीं है कि विजया मॉल के सामने सड़क किनारे अवैध चारमंज़िला इमारत बन चुकी है ? क्या वह नहीं जानते कि बृज इंक्लेव में कब्रिस्तान की ज़मीन पर 16 फ्लैट खड़े हैं ? या फिर यह मान लिया जाए कि सब कुछ जानकर भी वे आंखें मूंदे बैठे हैं ? यह चुप्पी संदेह को जन्म देती है, और जनता के बीच यह धारणा मजबूत हो रही है कि रिजवान जैसे लोगों को प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। सूत्र बताते हैं कि रिजवान कुछ स्थानीय राजनीतिक चेहरों का 'फाइनेंसर' रहा है। यही कारण है कि जब भी उसके खिलाफ कोई शिकायत पहुँचती है, तो वह या तो फाइलों में दबा दी जाती है या अधिकारियों को ‘ऊपर से निर्देश’ मिल जाते हैं...“अभी न छेड़ा जाए।” यही कारण है कि वर्षों से शहर में उसकी गतिविधियाँ बेधड़क चल रही हैं, और जनता निरीह होकर यह तमाशा देख रही है। सवाल यह है कि अगर एक सामान्य नागरिक नक्शा पास कराए बिना एक ईंट भी रखे, तो नोटिस और ज़ुर्माना तुरंत मिलता है। फिर रिजवान जैसे भूमाफिया के खिलाफ विशेष नरमी क्यों ?

रिजवान एक चेहरा... पीछे छिपा है एक पूरा भ्रष्ट सिस्टम

रिजवान का नाम सामने है। चार मंज़िला इमारत, कब्रिस्तान की ज़मीन पर बने फ्लैट, फर्जी नक्शे, नकली कागज़ात, वीडीए की चुप्पी, डीएम साहब की चुप्पी सब खुलकर उजागर हो चुका है। लेकिन इस कहानी को अगर महज एक भूमाफिया के दुस्साहस के रूप में देखें, तो हम उस वृहद अपराध तंत्र को नहीं पहचान पाएँगे जो वाराणसी जैसे ऐतिहासिक शहर को भीतर से खोखला कर रहा है। रिजवान अकेला नहीं है। वह एक नेटवर्क का हिस्सा है जिसमें शामिल हैं.... ब्यूरोक्रेसी के भीतर बैठे भ्रष्ट अधिकारी, जो नक्शा पास न होने के बावजूद आँखें मूँद लेते हैं। राजनीतिक आकाओं के निजी हित, जो वोट, पैसे और प्रभाव के बदले अपराधियों को संरक्षण देते हैं।
कुंठित न्याय-प्रणाली, जिसे अदालत तक पहुँचाने के लिए वर्षों की लड़ाई लड़नी पड़ती है। और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण, वो मौन समाज, जो सब कुछ देखता है, जानता है, पर डर या स्वार्थ में बोलता नहीं।

पार्ट-20 

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए.....
चप्पा-चप्पा बेच रहा है जोनल संजीव कुमार !