देव दीपावली: आज गंगा किनारे उतरेगा देवलोक, काशी बनेगी स्वर्ग से सुंदर
वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी यानी काशी शिव की नगरी, जहाँ हर दिन एक उत्सव होता है, हर क्षण में कोई अनुष्ठान चलता रहता है। लेकिन वर्ष भर के इन अनगिनत उत्सवों में एक ऐसा पर्व आता है जब पूरा बनारस किसी स्वर्गलोक में बदल जाता है। यह दिन है देव दीपावली वह रात जब यह कहा जाता है कि “गंगा के घाटों पर करोड़ों देवी-देवता स्वयं अवतरित होते हैं।”
देव दीपावली की दिव्यता
कार्तिक पूर्णिमा की यह रात, जब चाँद अपनी पूर्ण आभा में गंगा जल पर चमकता है, तब काशी के घाट दीपों से जगमग हो उठते हैं। लगभग 84 घाटों पर एक साथ जलते लाखों दीपक न सिर्फ रोशनी बिखेरते हैं, बल्कि सदियों पुरानी आस्था और परंपरा को भी जीवंत कर देते हैं। यह दृश्य इतना अद्भुत होता है कि कहा जाता है, “काशी में देव दीपावली देखना जीवन में एक बार का अनुभव है।”
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, देव दीपावली का अर्थ है “देवताओं की दीपावली।” यह पर्व उस दिन मनाया जाता है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करके देवताओं को मुक्ति दिलाई थी। उस विजय की खुशी में देवताओं ने गंगा तट पर दीप जलाकर उत्सव मनाया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि इस दिन गंगा किनारे दीप जलाकर देवताओं का स्वागत किया जाता है।
गंगा और घाटों का अलौकिक संगम
आज शाम जब सूर्य अस्त होगा, तो अस्सी घाट से लेकर राजघाट तक हर सीढ़ी, हर मंदिर, हर नाव और हर लहर पर दीप झिलमिलाने लगेंगे। गंगा आरती के स्वर, शंखनाद की गूंज, मंदिरों की घंटियों की टंकार और भजन की धुनें एक साथ मिलकर ऐसा वातावरण रच देती हैं, जो भक्तों को भाव-विभोर कर देता है।
हवा में घुली दीपों की लौ और अगरबत्ती की सुगंध, गंगा की धीमी लहरों का स्पर्श, और आकाश में झिलमिलाते पटाखों का नज़ारा सब मिलकर बनारस को किसी दिव्य लोक में बदल देते हैं। यह वही क्षण होता है जब लगता है कि सचमुच देवता गंगा तट पर उतर आए हों।
देव दीपावली अब केवल धार्मिक पर्व नहीं रहा, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और पर्यटन महोत्सव बन चुका है। दुनिया भर से लोग इस दिन काशी आते हैं। विदेशी पर्यटक घाटों की सीढ़ियों पर दीप सजाते हैं, नावों पर बैठकर दृश्य को कैमरों में कैद करते हैं। ड्रोन और हवाई कैमरों से ली गई तस्वीरें सोशल मीडिया पर छा जाती हैं।
नगर निगम और गंगा सेवा निधि सहित कई संस्थाएं इस आयोजन को भव्य रूप देने में जुटी रहती हैं। घाटों को फूलों, झालरों और रंगोली से सजाया जाता है। सुरक्षा व्यवस्था चुस्त की जाती है ताकि श्रद्धालु बिना किसी बाधा के गंगा दर्शन कर सकें।
देव दीपावली का आध्यात्मिक महत्व यह है कि यह हमें अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह दीप केवल मिट्टी के नहीं होते, बल्कि यह मनुष्य के भीतर के अंधकार-अज्ञान, लोभ, द्वेष और अहंकार-को दूर करने का प्रतीक हैं। जब करोड़ों दीप एक साथ जलते हैं, तो यह सामूहिक चेतना का प्रतीक बन जाते हैं-एक ऐसी चेतना जो बताती है कि जब सब मिलकर रोशनी करें, तो अंधकार का अस्तित्व नहीं रह जाता।
बनारस में देव दीपावली केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि पूरी संस्कृति की झलक है। यहाँ के लोग कहते हैं “काशी में दीप जलाने का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि आत्मा को उजाला देना है।” सदियों से यह शहर यही संदेश देता आया है कि जीवन चाहे कितना भी जटिल क्यों न हो, अगर भीतर का दीप जलता रहे, तो हर अंधियारा रास्ता रोशन हो जाता है।
आज जब सूर्य अस्त होगा और गंगा किनारे दीपों का सागर उमड़ेगा, तो यह केवल दृश्य नहीं होगा-यह अनुभव होगा, आस्था की तरंग होगी, और काशी की आत्मा की झलक होगी। देव दीपावली इस बात का प्रमाण है कि काशी सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक जीवंत आध्यात्मिक ऊर्जा है-जहाँ हर दीपक एक प्रार्थना है, हर लहर एक आरती है, और हर हृदय में शिव का वास है।











