आखिर पुतिन से सीधे टकराने से क्यों डर रहे हैं अमेरिका और नाटो , जाने क्यों ?
(रणभेरी): यूक्रेन पर रूसी हमले का आज दूसरा दिन है। गुरुवार को पूरे देश में जगह-जगह रूस ने करीब 200 से ज्यादा हमले किए। यूरोप में छिड़ी जंग में यूक्रेन अकेला छूट गया है। उसे रूस के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है। रूसी टैंक यूक्रेन की राजधानी से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर खड़े हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि, 96 घंटे के अंदर राजधानी कीव पर रूस का कब्जा होगा और एक सप्ताह के अंदर यूक्रेन की सरकार भी गिरा दी जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि, अमेरिकी समर्थन वाला यूक्रेन इस जंग में इतना अलग-थलग क्यों पड़ गया? आखिर, नाटो सदस्य देश और अमेरिका सीधे तौर पर रूस से टकराने से क्यों पीछे हट रहे हैं। सीधे हमले के बजाय वे बस बयानबाजी और प्रतिबंधों तक क्यों सीमित हैं?
यूक्रेन को ये जंग अकेले ही लड़ना पड़ रहा है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन से टकराना किसी भी देश के लिए आसान नहीं है।जिसके कारण से अमेरिका ने सीधे तौर पर कहा दिया कि वह अपनी सेना यूक्रेन में नहीं भेजेंगे। ऐसा ही संदेश नाटो की ओर से भी दिया गया है। रूस जब यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर रहा था। सीमाओं पर सैनिक तैनात किए जा रहे थे, तब अमेरिका सबसे ज्यादा उग्र था। बाइडन ने यहां तक कह दिया था, कि अगर यूक्रेन पर हमला हुआ तो नाटो सदस्य देश मिलकर रूस पर हमला करेंगे और इसके अंजाम बहुत बुरे होंगे, लेकिन रूस इन धमकियों से पीछे नहीं हटा और उसने यूक्रेन पर सैन्य अभियान शुरू कर दिया। इसके बाद से अब तक न ही अमेरिका और न ही नाटो का कोई सदस्य देश रूस से सीधे टकराने के लिए आगे आया है।