काशी और तमिल कलाकारों की प्रस्तुति देख झूमें पर्यटक
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वाराणसी (रणभेरी सं.)। नमो घाट पर गंगा किनारे ठंडी हवा के बीच काशी और तमिल म्यूजिक और डांस का फ्यूजन देखने को मिला। काशी-तमिल संगमम-3 के डेलीगेट्स ढोल की धुन खूब नाचे। वहीं, यूपी के गीतों पर नृत्य और तमिलनाडु के भरतनाट्यम ने उत्तर और दक्षिण के मेल को दिखाया। वाराणसी और पूरे तमिलनाडु से आए 10 कलाकारों ने काफी मनमोहक और जोश भरी प्रस्तुतियां दीं। पांचवें दिन के कार्यक्रम की भव्य शुरूआत "बन्ना रे बाग में झूला झूले" नृत्य प्रस्तुति के साथ हुई, इसके बाद संगीत एवं मंच कला संकाय के विद्यार्थियों द्वारा रुनझुन बाजे घुघरा गीत पर आकर्षक नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गई। इस सांस्कृतिक समागम के माध्यम से काशी और तमिलनाडु की विशेषताएं, दर्शन, विचारधाराएं एवं पौराणिक धरोहरें प्रस्तुत की जा रही हैं, जो उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूती प्रदान कर रही हैं। इसके बाद तमिलनाडु से आईं विदुषी यू.ई. सिंधुजा द्वारा हरिकथा - वी. कम्बरामायण का भावपूर्ण वाचन किया गया, जिसने दर्शकों को भक्ति एवं रामायण की दिव्यता का अनुभव कराया। नाट्य मंचन के माध्यम से तमिलनाडु से आए कलाकारों ने श्रीराम की लीलाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया, जो दर्शकों को भाव-विभोर कर गया।
नैनीमेलम की प्रस्तुति पर झूमे दर्शक
इसके पश्चात तमिलनाडु की प्रसिद्ध लोककलाओं की विविध प्रस्तुतियां की गईं, जिनमें नैनीमेलम की मनमोहक प्रस्तुति दी,करगम नृत्य जो एक प्रकार के घड़े को सिर पर संतुलित रखते हुए नृत्य की शैली है व कावड़ीअट्टम जो की धार्मिक कावड़ी यात्रा से प्रेरित नृत्य सिल्लुकुची अट्टम जो की डंडों के माध्यम से किया जाने वाला परंपरागत तमिल लोकनृत्य है जिसकी प्रस्तुती को प्रसिद्ध कलाकार कलाईमामानी गोविंदाराज और उनकी टीम ने प्रस्तुत किया। लोककला की इन प्रस्तुतियों ने उत्तर भारत के दर्शकों को तमिलनाडु की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराया।
महर्षि अगस्त्य के विशेषता को बताया
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बद्री शेषाद्रि का स्वागत श्रीपति और रामनरेश ने किया। अपने उद्बोधन में बद्री ने काशी और रामेश्वरम के तीर्थ संबंध और उत्तर-दक्षिण भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्राचीन काल से ही महर्षि अगस्त्य जैसे ऋषियों के माध्यम से इन क्षेत्रों में सामाजिक व सांस्कृतिक संबंध स्थापित रहे हैं।
एमएसएमई में उत्तर-दक्षिण के गठजोड़ पर जोर
काशी तमिल संगमम के तहत बीएचयू में बुधवार को आयोजित चौथे अकादमिक सत्र में लघु उद्यमियों और व्यावसायिक पेशेवरों ने उत्तर और दक्षिण के बीच एमएसएमई गठजोड़ पर चर्चा हुई। तमिल सदस्यों ने बीएचयू में स्टार्टअप और उद्योगों से समन्वय स्थापित करने के बारे में जाना। पं. ओंकारनाथ ठाकुर सभागार में मुख्य वक्ता बीएचयू के प्रबंध अध्ययन संस्थान की डॉ. दीपिका कौर ने बताया कि भारत में एमएसएमई क्षेत्र में 5.93 करोड़ पंजीकरण हुए हैं, जिससे 25 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला है और यह देश के कुल निर्यात में 45 फीसद का योगदान देता है। प्रो. सुभाष प्रताप सिंह ने अनुसंधान, निर्माण क्षेत्र में नवाचार, विपणन तकनीकों और ग्राहक आवश्यकताओं को पूरा करने की रणनीतियों पर विचार रखे। उन्होंने ह्यहेल्प अस ग्रीन स्टार्टअप का उदाहरण देते हुए बताया कि यह कंपनी मंदिरों से निकले फूलों का पुनर्चक्रण कर इको-फ्रेंडली उत्पाद बनाती है। स्टार्टअप विशेषज्ञ अनूप शुक्ला ने विचारशीलता, प्रयोग और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने वाली संस्कृति को विकसित करने की आवश्यकता बताई। जिला उद्योग केंद्र के बलराम ने स्टार्टअप्स के लिए वित्तीय सहायता, आधारभूत ढांचे के विकास और क्षमता निर्माण योजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के बीच सहयोग से उद्यमिता को बढ़ावा देने की संभावनाएं भी रेखांकित की। भारतीय उद्योग संघ और लघु उद्योग संघ के प्रतिनिधि राजेश भाटिया, रघुवेंद्र सिंह के साथ चेन्नई के रायरत्नम, तिरुनेलवेली के कुट्टी, कांचीपुरम की कंचना देवी ने भी विचार व्यक्त किए। तमिलनाडु के प्रतिनिधियों का स्वागत अपर जिला मजिस्ट्रेट रविशंकर ने किया।