राधारानी को काल्पनिक कहना न्यायमूर्ति की अज्ञानता

राधारानी को काल्पनिक कहना न्यायमूर्ति की अज्ञानता

वाराणसी (रणभेरी सं.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पुराण प्रामाणिक नहीं हैं। पुराणों में लिखी हुई बातें सुनी-सुनाई होती हैं। इसलिए कानून के नजरिए से उसे प्रत्यक्ष सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने मथुरा मामले में देवी श्री जी राधा रानी को पक्षकार बनाए जाने की अर्जी को खारिज कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले पर वाराणसी में शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा इससे न्यायाधीश की अज्ञानता झलकती है। शंकराचार्य ने कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने श्री कृष्ण जन्मभूमि के मामले को देखते हुए यह जो बात कही है कि श्री कृष्णा काल्पनिक है, राधा जी काल्पनिक है। यह न्यायधीश के अज्ञानता को दशार्ता है। उन्होंने कहा कि उन्हें याद ध्यान देना चाहिए की 9 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय ने श्री राम जन्मभूमि का निर्णय सुनाया था। जिसमें फैसला भगवान राम के पक्ष में न केवल फैसला सुनाया गया। यहां तक कि इसमें स्कंद पुराण सहित विभिन्न पुराणों और ग्रंथों को भी सबूत माना गया। शंकराचार्य ने कहा कि अगर इन सब बातों का ध्यान न्यायधीश ने रखा होता तो वह इस तरह की बात नहीं करते। न्यायाधीश को कम से कम इन बातों का ध्यान रखना चाहिए था कि भारत की स्थापित व्यवस्था है। अगर हिंदुओं के मामले में कोई धार्मिक निर्णय देना होगा तो हिंदुओं के धर्मशास्त्र के आधार पर ही निर्णय देना होगा। उन्होंने कहा कि हमारे यहां स्थापित और सर्वमान्य व्यवस्था विधि की है। वहीं अभी तक यही व्यवस्था है कि हिंदुओं के धर्म ग्रंथों की समीक्षा करना न्यायालय का अधिकार नहीं है।

भगवान को काल्पनिक मानने से भावनाएं आहत हुईं

शंकराचार्य ने कहा इलाहाबाद न्यायालय द्वारा भगवान कृष्ण और राधा रानी को काल्पनिक बताया गया है यह उनके द्वारा जो पूर्ववर्ती विधि व्यवस्था स्थापित की गई है उसकी अज्ञानता के कारण दिया गया फैसला है। ऐसा हम मानते हैं। बोले- न्यायाधीश को एक बार अपने ही नियमों की समीक्षा करनी चाहिए और उसको पढ़ना चाहिए। हमारे भगवान और ग्रंथों को काल्पनिक कहकर 100 करोड़ हिंदुओं की भावना को आहत करने से बचना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा- ठोस सबूत के साथ आएं राधारानी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की सह-मालकिन होने का राधारानी का दावा पौराणिक ग्रंथों में लिखे तथ्यों पर आधारित है। राधारानी श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़ी संपत्ति की सह-स्वामिनी हैं, यह केवल पौराणिक ग्रंथों से साबित नहीं किया जा सकता है। राधा रानी की ओर से ऐसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया जिससे यह साबित हो सके कि वह विवादित संपत्ति की सह-स्वामिनी थीं या विवादित संपत्ति में उनका कोई मंदिर था। अगर भविष्य में आवेदक इस दावे के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश करता है कि वह वाद की संपत्ति की सह-स्वामिनी हैं तो उचित समय पर पक्षकार बनाने के बारे में विचार किया जा सकता है। लिहाजा, वर्तमान सिविल वाद में राधारानी को पक्षकार बनाने का दावा सुनवाई योग्य नहीं है।