राजबंधु: काशी के मधुरिम स्वाद का सिंधु

राजबंधु: काशी के मधुरिम स्वाद का सिंधु
  • पांच पीढ़ियों से संभाल रहे बनारसी जायके व उत्पादों की गुणवत्ता की विरासत
  • नित नूतन प्रयोगों व पुरातनता के संवर्धन ने बनाया प्रतिष्ठान को मिठास का सरताज

वाराणसी (रणभेरी):  दिव्य प्रकाश व रसभरे  मिठास के पर्याय पंच दिवसीय महापर्व दीपावली की आहट पर्वोत्सव के रसिया शहर बनारस की दहलीज पर दस्तक देने को है। ऐसे में रणभेरी  की पहुंच है आज काशी के मधुरिम रस के सिरमौर प्रतिष्ठान श्रीराजबंधु के कमच्छा स्थित चमचमाते शोरूम तक कलेजे को तर कर देने वाली मिठाइयों की अटूट कतार से सजे प्रतिष्ठान के विक्रय पटल की शोभा  के क्या कहने ? मानोें किसी भी  मिष्ठान्न पर दृष्टिपात मात्र से बड़े-बड़े व्रतियों का ईमान डिग जाये। 

पूरे एक सदी की साख और भरपूर विश्वास

18वीं सदी के उत्तरार्ध से ही बनारसी मधुरिमा के संरक्षण व संवर्धन में निरंतर रत प्रतिष्ठान के पांचवीं पीढ़ी के प्रतिनिधि..चंदन. गुप्ता बताते हैं कि इन दिनों दीपोत्सव की रात मां ऐश्वर्य लक्ष्मी को अतिशय प्रियभोग प्रसाद सूरन वाले लड्डूओं के निर्माण के प्राथमिक उपचार चल रहे हैं। मिष्ठान्नों की शतकीय शृंखला की अन्य किस्मों निर्माण का कच्चा काम अ•ाी से निबटाना जा रहा है। उत्कृष्ट गुणवत्ता स्वाद व सुगंध की ताजगी सदा सर्वदा से हमारा ध्येय रही है। अतएव हर मिठाई दक्ष विशेषज्ञों के निर्देशन में ही तैयार होती है। इसी संकल्प के तहत रात-दिन एक करके हम लोग त्यौहारों पर ताजे उत्पाद ग्राहकों को उपलब्ध करा पाते हैं। हमारे मूल प्रतिष्ठान (कचौड़ी गली) में भी इन दिनों यही कवायत चल रही है। 

चंदन गुप्ता, राजीव कुमार गुप्ता 

सिर्फ व्यवसाय नहीं एक शानदार परम्परा

..चंदन गुप्ता बताते हैं कि 18वीं सदी के उत्तरार्ध में स्वाद के पारखी व विशेषज्ञ गुप्ता परिवार के मुखिया ने बनारसियों की रसना (जीभ) से लेकर जिगर तक को मीठी तरावट से तृप्त करने के लिए कचौड़ी गली में राजबंधु मिष्ठान प्रतिष्ठान की स्थापना की तभी से उत्पादों की शुद्धता व गुणवत्ता से कोई समझौत न करने का संकल्प भी गांठ बांध लिया गया। मिलावट की अंधाधुंध हड़बोंग के इस दौर में भी  देसी घी खोवा, छेना हो अथवा मेवा या फल सभी कच्चे उत्पादों की कीमतों की परवाह न करते हुए हम जा्े भी  प्रस्तुत करते है सर्वोकृष्ट प्रस्तुत करते हैं। 

प्रयोगधर्मिता से ही अविष्कृत की मिठाइयों की अटूट शृंखला

गुप्ता के अनुसार खांटी बनारसी शैली की मिठाइयों मसलन गुलाब जामुन, चमचम, पेड़ा, बर्फी, राजभोग, रसवंती, राधा प्रिय बर्फी, खीरकदम, गुझियां व खीरमोहन को तो हमने नये स्वाद से संवारा ही। साथ में शाम के स्नैक, कचौड़ी आदि को हमने नये प्रयोगों से निखारा। पालक का समोसा, दिलफरेब कचौड़ियों व परम्परागत बनारसी नमकीन की किस्में भी इस पांत में  शुमार है। वर्तमान दौर में नित नूतन प्रयोगों से निखरी नई मिठाइयां काजू ठंडाई गुझियां, मैंगोे डिलाइट, मलाई गिलौरी, पलंग तोड़, काजू मगदल, छेना गिलौरी, रबड़ी रसमलाई जैसी स्पेशल मिठाइयां राजबंधु को एक विश्वसनीय इंटरनेशनल ब्रांड बनाती हैं।

नगर भर का मुंह मीठा कराते टहला करते थे बचानू भइया 

बात राजबंधु की हो और अपने बचानू भइया यानि दिवगंत स्व. राजकिशोर गुप्ता का जिक्र न चले ऐसा हो कैसे सकता है। दुकान दौरी से खलिहर हुए नहीं कि कंधे पर मिठाई के पैकेटों से भरा झोला लटका कर निकल लिए नगर की सड़कों -गलियों में टहलान मारने। क्या मजाल कि सामने पड़ा कोई इष्ट मित्र परिचित बचानू भइया के हाथों मुंह मीठा कराये बिना एक कदम भी आगे बढ़ जाये। 

 कहने को हलवाई मगर जबरदस्त करिश्माई

आज की पीढ़ी शायद अंजान होगी इस तथ्य से कि राजकिशोर गुप्ता सिर्फ हलवाई ही नहीं एक जबरदस्त करिश्मा किरदार थे। काशी की कला संस्कृति के वैभव को शिखर देने में उनका योगदान कभी भूलाया नहीं जा सकता। भारतरत्न एम. सुबुलक्ष्मी को विनम्र आग्रह से अ•िा•ाूत कर काशी विश्वनाथ सुप्रभात की रिकार्डिंग कराना और बाद में समूचे नगर में उसके प्रसारण के लिए सबसे ऊंचे भवन पर ध्वनि विस्तारक को स्टाल कराना उन्हीं की देन थी। निर्जला एकादशी व्रत पर्व पर कलश शोभायात्रा व बाबा के जलभिषेक  की परम्परा भी  उनकी ही देन है। रामनगर की लीला में राम- शबरी मिलन प्रसंग के दौरान मीठे बेर का भोग लगाने के लिए यह मध्य प्रदेश के निमच से बेर मंगा कर साल भर उसे सुरक्षित रखते थे। उनके पुत्र श्री राजीव गुप्ता इन सारे प्रकल्पों को आज भी  सहेजे हुए हैं। यह काशी और काशीवासियोंं के लिए पतिोष का विषय है।