काव्य- रचना

काव्य- रचना

       किरण           

सबकुछ भुला कर जिसे याद हर वक़्त किया वो तुम ही तो हो 
जिसके लिए सारा दिन भटका और पूरी रात रोया वो तुम ही तो हो 

जिसके खुशी के  लिए लुटा दिये सारी ख्वाईश अपनी 
उस खुशी  की मालिका सिर्फ तुम ही तो हो, 

माना कि मैं अभी बहुत दूर हूं तुमसे इस मंजर में 
पर मेरे दिल के पास जो है वो तुम ही तो हो 

मिटाने वाले ना जाने क्या-क्या  मिटाते है जमाने में 
सबकुछ मिटा कर लिखा जिसका नाम लिखा तुम ही तो हो 

अगर ना हो भरोसा अभी तुम्हें मेरी चाहत पर तो बोलो 
जिसके लिए सुबह से ही खुदको ज़ख्म दे रहा हूं वो  तुम ही  तो हो 

माना कि मर गया होगा जमाने के लिए मेरा दिल 
पर जिसके लिए आज भी धड़कता है वो  तुम ही तो  हो  

ज़रा सी प्यार हो तो कभी देखों मेरे आंखों में 
जिसकी तस्वीरें अभी भी हैं इन आंखों में वो तुम हैं तो हो 

और कुछ नहीं चाहिए खुदा से  मुझे अब अपनी दुआओं में 
बस आशा की एक किरण मिल जाए वो किरण तुम ही तो हो

 रितेश रंजन