काव्य-रचना
इश्क़ हो
"बासंती माह का इज़हार है
इश्क का रंग सुर्ख लाल है"
पुलवामा के शहीदों को
वतन कि मिट्टी से
इश्क़ था
गहरा इश्क़
समा गए मिट्टी में
निभा गए इश्क
तुम भी निभाओ
कुछ ज्यादा
या कुछ कम निभाओ
क्यूंकि इश्क़ ज़रूरी है
नफ़रत के बाज़ार में
मुहब्बत कि दुकान पे
हाथों में हथियार नहीं
हाथों में गुलाब हो
खुन हो ग़र दिल में हो
मुहब्बत हो हर दिल में हो
आसमां से हो या ज़मीं से हो
हो लेकिन ज़रूर हो
आकाश कुमार सिंह