काव्य-रचना
मेरे प्रश्न
नारी बड़ा भारी शब्द है!
जिसके बिना सारी कल्पनाएं निशब्द हैं!
सुदर्शन दिया नारायण ने , उसे ब्रह्मा ने ब्रह्मास्त्र दिया।
उस रक्त चाटती काली को ,क्या किसने कभी परास्त किया?
भाल उठाया दुर्गा ने, अब मैं तलवार उठाऊँगी।
क्या तब तुम मुझको मानोगे जब मैं पिनाक उठाऊँगी?
तलवार उठाऊँ क्या तुम पर ? घूंघट से तुमको चैन कहाँ ?
दिलजोरी करते फिरते हो ,नारी से तीखे नैन कहाँ?
क्या नैन दिखाऊं , देखोगे ? रोटियां प्रेम की सेंकोगे ?
सीमा दिखाओ देखूं मैं ? कितनी मानवता बचोगे?
तुम ही हमे बताते हो ,मर्यादा का मतलब हिज़ाब होता है!
और अब मैं तुम्हे बताती हुँ ,की हमारी ना का मतलब तेज़ाब होता है!
तुम हमेशा गलत नही, मैं हमेशा सही नही ,
पर सिर्फ तुम ही सही हो ,ये भी तो सही नही।
किसी का अस्तित्व मार देना कहाँ तक न्यायपूर्ण है?
किसी का अधिकार छीन लेना भी तो सही नहीं !
गलतियां नहीं अपराध देख रही हुँ ,
इस युग मे नही ,बार बार देख रही हुँ !
तुम्हे लग रहा हैं ,मैं कह रही हुँ ?
तुम देख रहे हो ,मैं सह रही हुँ!-
शौर्या सिंह 'इशिका'