काव्य-रचना

काव्य-रचना

   गूंज उठी रणभेरी   

गूंज उठी रणभेरी
हा गूंज उठी रणभेरी हैं, 
वो झूठ को घेरी है।
तुम रोक न उसको पाओगे,
तुम सत्य को कब तक झुठलाओगे ।
रणभेरी की आवाज हैं ,
परिवर्तन का आगाज़ हैं।
कलम जब बोलेगी,
ये सबकी पोल खोलेगी।
रणभेरी ने ठाना हैं,
सबको अब जागना है।
हा गूंज उठी रणभेरी हैं, 
वो झूठ को घेरी है।


प्रगति मौर्या