धनतेरस पर वर्ष में सिर्फ पांच घंटे ही होते हैं धन्वन्तरी भगवान के दर्शन

धनतेरस पर वर्ष में सिर्फ पांच घंटे ही होते हैं धन्वन्तरी भगवान के दर्शन
  • देशभर में अकेली है धन्वन्तरी भगवान की प्रतिमा
  • दर्शन मात्र से वर्ष भर लोग रहते हैं निरोग व प्रसन्न, सवा तीन सौ सालों से चली आ रही है पूजन की परम्परा

राधेश्याम कमल

वाराणसी (रणभेरी): काशी के सुड़िया स्थित राजवैद्य पं. स्व. शिवकुमार शास्त्री के आवास पर एक दुर्लभ अष्टधातु की प्रतिमा विराजमान है। देशभर में भगवान धन्वन्तरी की यह अकेली प्रतिमा है। भगवान धन्वन्तरी की इस तरह की कोई भी प्रतिमा अन्यत्र कहीं भी नहीं है। धन्वन्तरी जयंती पर इनका दर्शन होता है। धन्वन्तरी भगवान का दर्शन इस दिन सिर्फ पांच घंटे के लिए होता है। धन्वन्तरी जयंती पर भगवान धन्वन्तरी का दर्शन करने के लिए इस दिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन करने को उमड़ती है। पिछले सवा तीन सौ साल से लगातार धनतेरस (धन्वन्तरी जयंती) पर भगवान धन्वन्तरी के दर्सन के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु आरोग्य की कामना के साथ धन्वन्तरी भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि भगवान धन्वन्तरी के दर्शन मात्र से ही प्राणी वर्ष भर निरोग एवं स्वस्थ्य रहता है।

भगवान धन्वन्तरी आज के ही दिन प्रगट हुए थे

भगवान धन्वन्तरी आज के ही दिन समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे। जिनका स्वरूप पिताम्बर धारण किये चार भुजाधारी भगवान जिनके एक हाथ में अमृत कलश, शंख-चक्र लिए हुए हैं। वैद्यराज कन्हैया लाल ने 1810 में सार्वजनिक उत्सव का आयोजन शुरू किया था। इसके बाद वैद्यराज बाबूनंदन ने भगवान के विग्रह का पूरी तरह से शृंगार कर उत्सव मनाया। कहते हैं कि इस तरह का विग्रह देश भर में कहीं नहीं है।

पूर्व राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री भी यहां आ चुके हैं

राजवैद्य स्व. शिवकुमार शास्त्री के धन्वन्तरी निवास में भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित अनेक मुख्यमंत्री एवं राजनेताओं ने आयुर्वेदिक इलाज के लिए आ चुके हैं। इस संदर्भ में राजवैद्य के पुत्र समीर कुमार शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष धनतेरस के दिन दोपहर में भगवान धन्वन्तरी को स्नान के साथ आयुर्वेदिक औषधियों से शृंगार एवं भोग लगा कर पांच ब्राह्मणों द्वारा पूजन एवं आरती की जायेगी। जिसमें पं. रामकुमार शास्त्री, नंद कुमार शास्त्री, उत्पल शास्त्री, कोमल शास्त्री, आदित्य विक्रम शास्त्री व विक्रम शास्त्री सहित पारिवारिक जन भगवान धन्वन्तरी की शास्त्र सम्मत विधि से आराधना कर भगवान से निरोगी व सुख समृद्धि का आशीर्वाद लेंगे। शाम 5 बजे मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जायेगा। समस्त आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जायेगा। स्वास्थ्य का खजाना रुपी आशीर्वाद पाने के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। ठीक रात्रि दस बजे मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है। एक वर्ष पश्चात ही धनतेरस के दिन पुन: मंदिर का कपाट 5 घंटे के लिए खोला जाता है।

यहां पर जरुरतमंदों की होती है नि:शुल्क चिकित्सा

धन्ववरी निवास पर आयुवेर्कि चिकित्सा के असाध्य बीमारियों को ठीक कर जरुरतमंदों को नि:शुल्क दवाइयां दी जाती है। यहां सिर्फ धन्वन्तरी भगवान का दर्शन दर्शन ही नहीं होता बल्कि यहां पर आयुर्वेदिक चिकित्सा भी होती है।

काशी नरेश ने दिया था राजवैद्य का दर्जा

स्व. पं. शिवकुमार शास्त्री को राजवैद्य का दर्जा काशी नरेश स्व. डॉ. विभूतिनारायण सिंह ने दिया था। क्योंकि धन्वन्तरी निवास में पीढ़ियों से राजपरिवार से संबंध रहा है। उन्हें आयुवेर्कि चिकित्सा प्रदान की जाती रही। जिससे राज परिवार ने पंडित शिवकुमार शास्त्री को राजवैद्य की उपाधि से अलंकृत किया।