काशी का लोलार्क कुंड: संतान सुख की कामना से जुड़ा लक्खा मेला, 29 अगस्त को जुटेंगे लाखों श्रद्धालु

काशी का लोलार्क कुंड: संतान सुख की कामना से जुड़ा लक्खा मेला, 29 अगस्त को जुटेंगे लाखों श्रद्धालु

वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी का मशहूर लोलार्क कुंड 29 अगस्त को आस्था का बड़ा केंद्र बनेगा। इस दिन होने वाले षष्ठी स्नान में करीब 2 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है। इसी वजह से इसे काशी के लक्खा मेलों में गिना जाता है।

मिस्र के उल्टे पिरामिड जैसा आकार

लोलार्क कुंड का आकार मिस्र के उल्टे पिरामिड जैसा है। करीब 50 फीट गहरे और 15 फीट चौड़े इस कुंड में महिलाएं सूनी गोद भरने की आस्था लेकर डुबकी लगाती हैं।

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने 5 किमी लंबी बैरिकेडिंग लगाई है। स्नान और निकासी के लिए अलग-अलग मार्ग बनाए गए हैं। पर्व 24 घंटे तक चलेगा और इसकी निगरानी के लिए 11 एसीपी और 1200 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं।

क्यों खास है लोलार्क कुंड?

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. प्रवीण राणा का कहना है कि वे पिछले 40 वर्षों से लोलार्क कुंड और उसके वैज्ञानिक पहलुओं पर रिसर्च कर रहे हैं। उनके अनुसार, कुंड का आकार, सूर्य की किरणें और गंगाजल मिलकर ऐसी ऊर्जा उत्पन्न करते हैं, जो संतान प्राप्ति में सहायक मानी जाती है।
उनके सर्वे में सामने आया कि यहां स्नान करने वाले करीब 60% दंपतियों को संतान सुख प्राप्त हुआ।

प्राचीन ग्रंथों और इतिहास से जुड़ा

प्रो. राणा का दावा है कि लोलार्क कुंड का जिक्र शतपथ ब्राह्मण (8वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में मिलता है।

1822 में जेम्स प्रिंसेप ने भी अपने लेख में इसे गर्भधारण कराने में सहायक बताया था।

इतिहासकारों का मानना है कि यह कुंड गुप्त काल (चौथी शताब्दी) का है। बाद में गहड़वाल वंश के राजा गोविंद चंद और इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

वैज्ञानिक आधार- 2009 में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के अनुसार, लोलार्क छठ के दिन सूर्य की किरणें कुंड के उत्तरी ध्रुवीय बिंदु से होकर गुजरती हैं और पानी के साथ मिलकर एक विशेष ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। यही कारण है कि इसे गर्भाधान के लिए लाभकारी माना जाता है।

धार्मिक परंपरा- मंदिर के प्रधान पुजारी रमेश कुमार पांडेय बताते हैं कि इस दिन विवाहित दंपती को कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद एक फल का दान करें और भीगे कपड़े वहीं छोड़ दें। अंत में लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन करने की परंपरा है।

इस बार उमड़ेगी भीड़

पुजारी के अनुसार, इस बार स्नान के लिए 1 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच सकते हैं। प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं।