काव्य-रचना
जईसन चहबा वईसन जिनगी होईहे तोर
जईसन चहबा वईसन जिनगी होईहे तोर
सांझ चहबा सांझ होई भोर सोचबा भोर
रुपया पैसा मॉल खजाना सब यही रह जाना
जी ला राउर सपना के बस ईहे समझाना
जश मनवा बस बा आपन आउर सभे बेगाना
जेकरा बदे रोज मरे ला इक दिन जईबा छोर... सांझ
केकरा खोजत है बौराया ई छन भंगुर जग में
काशी में ना काबा में रब बसता है हम सब में
मंदिर गिरजाघर में नाही उ रहता कन कन में
मधुरी बानी जिन भूलिहा अरज बा करजोर... सांझ
जब तू सोचबा नाही होई फिर कैसे हो जाई
अपने खातिन अच्छा सोचा मत जा भरमाई
इहे मंतर काम करेला आउर न कामे आई
एकरा जे जनलस उनकर जिनगी बा बरजोर.. सांझ
सगरी ओरिया लागल झूठ लूट क मेला बा
घट घट पर ठगवा बैठल बस जय अकेला बा
अब खुद से करा आसरा ई जग एक डेरा बा
खुद खातीन निक विचारा बुरा न तनिको थोर
जईसन चहबा वईसन जिनगी होईहे तोर
सांझ चहबा सांझ होई भोर सोचबा भोर
जय प्रकाश "जय बाबू"