मां दुर्गा के स्वागत को तैयार है काशी

मां दुर्गा के स्वागत को तैयार है काशी
  • गुरुवार से शुरू हो रहा नवरात्र, सजेगा माता का दरबार, 12 अक्टूबर से पंडालों में मां दुर्गा देंगी दर्शन
  • काशी जोन में 134 तो वरुणा जोन में 117 पंडाल, बोले पुलिस कमिश्न, सख्ती से कराएं कोरोना नियमों का पालन

वाराणसी (रणभेरी): पितृपक्ष की समाप्ति के साथ ही आश्विन मास के शुक्ल पक्ष का समय शुरू हो रहा है। आने वाले 9 दिन माता अंबा की पूजा से संबंधित हैं। मां अंबा यानी कि देवी दुर्गा, जो कि महिषासुर मर्दिनी हैं और जगत जननी हैं। देवी की आराधना के इन पवित्र दिनों को नवरात्रि कहते हैं, यानी वह समय जब देवी मां अपने भक्तों के घर पधारती हैं, उनका हाल जानती हैं और अपनी कृपा का पात्र बना लेती हैं। वैसे तो देवी का वाहन सिंह है, लेकिन यह तभी उनका वाहन है जब वे युद्ध रत होती हैं। भक्तों के पास आने के लिए मां भगवती अलग-अलग वाहनों का चुनाव करती हैं। इस बार मां नवरात्र की शुरुआत 7 अक्टूबर (गुरुवार) से हो रही है।  इस बार षष्ठी तिथि का क्षय होने से नवरात्रि 8 दिन की ही रहेगी। काशी के ज्योतिषशास्त्री व काशी विद्वत परिषद का कहना है कि देवी का आगमन इस बार झूले पर और गमन हाथी पर होगा। 

झूले पर माता का आगमन आपदा के संकेत दे रहा है। महाष्टमी 13 और महानवमी 14 अक्तूबर को है, जबकि 15 को दशहरा मनाया जाएगा। इस बार देवी डोली पर सवार होकर आ रही हैं। देवी भागवत ग्रंथ के अनुसार हर साल नवरात्र पर देवी अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर धरती पर आती हैं। देवी के अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर आने से देश और जनता पर इसका असर भी अलग-अलग होता है। इस साल प्रशासन ने दुर्गा पंडाल लगाने की अनुमति दे दी है। वाराणसी में इस बार 2 साल बाद दुर्गापूजा में माता की झांकी देखने को भक्त जुटेंगे। वाराणसी प्रशासन ने सुरक्षा से लेकर कोविड नियमों के पालन के लिए तैयारियां तेज कर दी है। हो गईं हैं। प्रशासन ने शहर भर में सजाए जाने वाले 251 पंडालों की सूची जारी कर दी है। काशी जोन में 134 और वरूणा जोन में 117 पंडालों को अनुमति मिली है। इस बार सबसे अधिक पंडाल 22-22 पंडाल सिगरा और आदमपुर थाना क्षेत्र में सजाए जा रहे हैं। नवरात्रि की सप्तमी पर दुर्गा पंडालों में प्रतिमा स्थापित की जाएंगी। सप्तमी, अष्टमी व नवमी दर्शन के बाद 15 को मूर्ति विसर्जन और 15 को विजयदशमी पर रावण का दहन होगा। वहीं दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन गंगा में नहीं बल्कि तालाब में किया जाएगा। 

यह होता है शुभ-अशुभ असर

माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार सालभर होने वाली घटनाओं के भी संकेत मिलते हैं। इनमें कुछ वाहन शुभ फल देने वाले और कुछ अशुभ फल देने वाले होते हैं। देवी जब हाथी पर सवार होकर आती है तो पानी ज्यादा बरसता है। घोड़े पर आती हैं तो युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका पर आती हैं तो सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और डोली पर आती हैं तो महामारी का भय बना रहता हैं। इसका भी वर्णन देवी भागवत में किया गया है।

शारदीय नवरात्रि के घट स्थापना का मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि में पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसे कलश स्थापना भी कहते हैं।  इस दौरान नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लिया जाता है। कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 7 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 17 मिनट से सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक है। घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक है। कलश स्थापना निषिद्ध चित्रा नक्षत्र के दौरान की जाएगी। 

मूर्ति को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार

सात अक्टूबर से नवरात्र शुरू हो रहा है। ऐसे में मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। लगातार दूसरे साल भी नवरात्र पर कोरोना की काली छाया बरकरार है। मूर्तिकारों का कहना है कि इस बार मूर्तियां पंडालों में स्थापित तो हो रही हैं, लेकिन हमें पहले जैसे ऑर्डर नहीं मिल पा रहे हैं। दो साल पहले तक यहां वाराणसी के साथ-साथ आसपास के जिलों और मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड के सीमावर्ती इलाकों के लोग भी मूर्तियां खरीदने आते थे। लेकिन, कोरोना ने पूरा माहौल ही बदल दिया है। अब न जाने कब हम मूर्तिकारों के दिन बदलेंगे। मूर्तिकार ने बताया कि नवरात्रि के 4 दिन बीतने के बाद पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित होती है।

सरकार की गाइडलाइन के अनुसार 5 से 7 फीट की मूर्ति पंडालों में स्थापित होनी है। कोरोना से पहले तक हमें एक सीजन में 20 से 22 मूर्तियों के ऑर्डर मिल जाते थे। इस बार अभी तक 7 से 8 मूर्तियों के ऑर्डर भी नहीं मिले हैं। मूर्तियां बनाने के लिए बाहर से भी कारीगर बुलाए जाते हैं। एक मूर्ति तैयार करने में लगभग ढाई से 3 लाख रुपए का खर्च आता है। लेकिन, ऐसा लग रहा है कि हमारी मेहनत भी बर्बाद होगी और पूंजी भी डूब जाएगी। कुछ ऐसा ही दुख पांडेय हवेली, बंगाली टोला, सोनारपुरा, मंडुवाडीह और शिवपुरवा इलाके के मूर्तिकारों का भी है।